जीवन यात्रा | Jeevan Yatra
श्रेणी : जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
153.42 MB
कुल पष्ठ :
494
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क्वेटा में कांगज-पत्र ठीक कराने के लिए मुझे अक्तूबर 1944 में ठहरना पड़ा था उस वक्त अपने 10-11 वर्ष के सहचर कैमरे को मैं आज्ञा न मिलने के कारण छोड़ गया था। 10 11 वर्ष काम कर चुकने के बाद उस पुराने मोडल के रोलेफ्लैक्स कैमरे का मूल्य निकल आया था लेकिन उसके साथ कई बार तिब्बत फिर जापान कोरिया रूस ईरान आदि की यात्रा की थी इसलिए उसके प्रति एक तरह का कोमल सम्बन्ध स्थापित हो गया था । जिसके पास उसे अमानत रूप में रख गया था उसने हमारे बतलाये स्थान पर लौटाने की तकलीफ नहीं की। अब उनसे भी क्या शिकायत हो सकती है। क्वेटा के हजारों हिन्दू जिस तरह अपने आशियान को छोड़ने के लिए मजबूर हुए और जहाँ-तहाँ विखर गये वही हालत उसकी भी हुई होगी । अब तो वह मेरे दुर्भाव नहीं बल्कि सहदयता के पात्र हैं । यात्रा में मैंने इस बात को स्वीकार किया है कि सोवियत के साथ की मेरी मैत्री 33-34 वर्षों पुरानी है। यह मेरी तीसरी यात्रा उस देश में थी। यदि मैं कहूँ कि मैं वहाँ -क्ले लोगों के बहुत घनिप्ट सम्बन्ध में आया तो शायद इसमें अतिरंजन से काम नहीं ले रहा हूँ। मैंने अपनी यात्रा में ऐसी बातों को भी लिखने मे संकोच नहीं किया है जिनको कि अच्छा नहीं कहा जा सकता । लेकिन वह पृष्ठभूमि का ही काम देती हैं जिसमें कि वहाँ के गुणों को अच्छी तरह से देखा जा सकता है। मैंने मुक्तकण्ठ से अपन इस ग्रन्थ में भी स्वीकार किया है और यहाँ भी स्वीकार करता हूँ कि सोवियत जीवन सोवियत कं विशाल निर्माण कार्य से न कंवल सोवियत-शासनयुक्त देशों को ही लाभ हुआ है वल्कि वह नवीन सोवियत राष्ट्र सारी मानवता की आशा है। आज या कल सभी देशों की सारी समस्याओं का हल उसी रास्ते होगा जिस रास्ते पर 1917 में रूस पड़ा और जिस रास्ते को उससे 32 वर्प वाद चीन ने पाने मे सफलता पाई । जो पार्टियों और जननायक अपने को नवीन मानवता का पक्षपाती मानते हैं ससार को सुख और शान्ति के मार्ग पर ले जानेवाला कहते हैं यदि वह सोवियत रूस और चीन कं साथ शत्रुता रखकर वैसा करना चाहते हैं तो मैं समझता हूँ वह अपने को और अपने पीछे चलनेवाली जनता को धोखा देते हैं। यह पढ़कर आश्चर्य होता है कि हमारे कितने ही सोशलिस्ट पार्टी के मड़ानेता पृथ्वी पर सोशलिज़्म लाने के लिए रूस-चीन को बाधक और अमेरिका को साधक समझते है । मैंन जगह-जगह पर दिखलाया है कि कैसे साल-भर पहिले कुछ चीजा का अभाव और कुछ बातों में दुर्दर्यवस्था देखी जाती थी लेकिन साल-भर वाद ही उसमें भारी परिवर्तन हो गया । मेरे भारत लौटने के 4 महीने बाद सोवियत से राशनिंग हट गई । युद्धापरान्त की पंचवार्षिक योजनाएँ आज मात्रा से अधिक पूरी हो चुकी हैं। पिछले 4 वर्षों में जहाँ सुख-समृद्धि के साधनों मे रूस ने भारी प्रगति की है वहाँ अणुवम जैसे घोर अस्त्रों का भी उसने आविप्कार कर लिया है। सैनिक तौर से वह अब दुनियाँ की सबसे सवल शक्ति है लेकिन शान्ति का पक्षपाती जितना आज वह है उतना दुनियाँ का कोई देश नहीं है । यह मानवता के लिए बड़ी प्रसन्नता की वात है कि मानवप्रगति का सबसे बड़ा समर्थक और सहायक देश समृद्धि और शक्ति में दिन-प्रतिदिन आगे बढ़ता जा रहा है । अब वह अकेला नहीं है बल्कि उसके साथ चीन जैसा महान् राष्ट्र है जो कि दो पंचवार्षिक योजनाओं को समाप्त करने के वाद रूस की तरह ही समृद्ध और सबल राष्ट्र हो जायेगा । अन्त में मैं इस यात्रा के लिखने में सहायक श्री हरिश्चन्द्र पुष्प के प्रति भी कृतज्ञता प्रकट करना चाहता हूँ जिन्होंने मेरे बोलने का जल्दी-जल्दी टाइप करके पुस्तक को निर्विध्न समाप्त करने में सहायता की । हैपीवेली मसूरी राहुल सांकृत्यायन 18 / राहुल-वाइमय-1.3 जीवने-यात्रा
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