जैनधर्म प्रकाश | Jaindharma Prakash
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
326
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५७
(४)
की कड़ी शा्षा नहीं है-वे स्वयं मरे हुवे पशुका माँस पीने में
दोष नहीं समझते हैं, इसी से चीन व ब्रह्मामें करोड़ोँ बौद्ध मांसा-
हारी है जबकि जैन कोई भी प्रगटपनें से मांसाहारी न मिलेगा ।
इसलिये जैनमत बीद्धमत की शाखा है यह कथन ठोक नहीं है
शीर न यह हिन्दुमत को शास्या है, क्योकि लांख्य, मोमांसादि
दशनौ से दका दाशंनिक मागं मिस्न ही प्रकार का है; जो
त पुस्तक क पुने से विदित दोगा ।
जैनमत की शिक्षा सीधी श्ौर वैराभ्यपूरं है । हर एक
गृहस्थ को छः कम नित्य कले का उपदेश दै । ( १ ) दैवपूजा
(९) गुरुमक्ति ( ३) शाखेपढ़ना (४) संयम ( 8० ठएए0)
07 ५1 0008700 )' का झाम्यास (९) तप ( सामगयिकं या
संध्या या ध्यानया ( आल्वापणा है (६ ) दान ( झाहार,
श्रीषधि, अरमय सथा विधा) तथा उनक्रो इन आटपूल युशौके
पालने का उपदेश हैः-
मवम मधु यागे; सहाणत पद् । ,
उपै मूलगुणानाहयहणं श्मणोतमाः॥ =,
श्र्थात्-मद या नशं न पीना, सति न खाना, मधु यानी
एद् न लाना क्योंकि इसमें बहुत से सुदम जंतुझ का नाश
होता है, पाच पापों से वचना श्रत् जात वृ कर चूथा
पश् पत्ती धादि की हिसा न करना, भू ठन बोलना, चोरी नें
करना, अपनों ख्री में संतोष रखना, परिश्रह था सम्पत्ति की
मर्यादा कर लेना जिसे वृष्णा, घरे इनको गृहस्थो के आद
भूल यण उत्तम ध्राचायो मे वतलाय। है ।
हमारे जैनेतर भाई देख सकते हैं कि यह शिक्षा भी दर एक
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