उपनिषदों की कथाएं | Upnishado Ki Kathayae
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34.09 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क्षीण कर दिया था। अग्निदेव एक सूखे तिनके का भी बाल बॉका न कर पाए।
यही तो भगवान् चाहते थे। पूरा भी किया।
जब अग्निदेव आँखे झुकाए, मुँह लटकाए लज्जित अवस्था मे लोट रहे थे तो
सब देवताओ का भी मुँह उतर चुका था । मगर उनमे भी एक देव थे, जो बेहद खुश
हो रहे थे। उनकी प्रसन्नता का कोई ठिकाना न था। यह थे वायुदेव, वह अपने
आपको किसी से कम न मानते थे । अग्निदेव से तो वह उच्च है, श्रेष्ठ है, यह उनका
पक्का इरादा था । पक्का निश्चय था। वह इस बारे मे पूरी तरह आश्वस्त थे।
अग्निदेव को लौटते देख, वायुदेव सोचने लगे-“अच्छा हुआ । बहुत अच्छा
हुआ । अग्निदेव जिस अपमान के काबिल थे, उन्हे वही मिला है। अपने आपको
बडा तीस मारखाँ समझते थे । लग गया न पता । इनकी जलाने की शक्ति भी व्यर्थ
हो जाती है, यदि मै, हवा, इनकी सहायता न कर्खें। जो आग को अब तक प्राधान्य
मिलता रहा है वह अकारण था। आज से खत्म। अग्नि का वर्चस्व समाप्त । मेरे
बिना तो आग जल ही नहीं सकती, यह बात मै सदा कहता था। आज प्रमाणित
हो गई। अब अग्नि को कोई अग्रणी नही मानेगा। बहुत अच्छा हुआ। मै जो
चाहता था, वही हुआ । उसको अपमान मिला । मै प्रसन्न हूँ। अब मेरे सम्मान का
समय आ गया है!
अग्निदेव की शर्मनाक पराजय ने वायुदेव का उत्साह बढा दिया। उसे लगा
कि अब उसके पौ-बारह होगे। उसका मन बल्लियो उछलने लगा। कई विचार
आते । उसे खुशी देते । चले जाते । ओर विचार आते, वे पहले से भी ज्यादा खुशी
देते । वायुदेव का तो सीना चौडा होने लगा। वह अपनी बारी की प्रतीक्षा करने
लगा ।
अन्धा क्या मॉगे * दो आँखे । ठीक यही हुआ वायुदेव के साथ । जिस घडी
की प्रतीक्षा थी, वह घडी आ गई । देवताओ ने एक बार ग्लानि के साथ अग्निदेव
पर नजर दोडाई और फिर आ पहुँचे वायुदेव के इद-गिद। घेर लिया उन्हे । करने
लगे मित्रते । उन्हे जाने को कहने लगे । पास ही खडी आकृति का परिचय लाने की
प्रार्थना करने लगे। साथ ही कह दिया कि उसे उनकी आँखो से दूर कर दो। वे
ओर अधिक असमजस की स्थिति मे नहीं रहना चाहते। यह भयाक्रान्त माहौल
उन्हे खाने को आ रहा है। वे असहज होते जा रहे हे। उन्हे इस सामने वाले
महापुरुष से, ज्वाला से चमकते शरीर से छुटकारा मिलना ही चाहिए।
वायुदेव यही चाहता था । मौका हाथ आन लगा। मगर अब उसे भी नखरा
करने का, ना-नुकर कहने का अवसर मिल गया। देवताओ को लगा कि उनकी
आशाओ पर शीघ्र पानी फिरने वाला है। यदि वायुदेव सचमुच नही मानते तो क्या
होगा ? उन सबको खतरा महसूस होने लगा ।
उपनिषद् गाथाएँ के 75
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