डाक्टर | Daktar

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Daktar  by विष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला श्रंक १७ पदा (जागकर) श्रभी जाती हूँ । भ्रभी (तेजी से जाती है । दादा एकदम कुर्सी पर गिर पड़ते हैं । कई क्षण सं्ञाहीन से न्य सें ताकते है । तभी निग होभ का सेवक रासु वहां भ्राता दहै । भस्त, चिन्ताहीच २० वर्षीय युवक, हाथ में श्राज की डाक है । ठिठकता है 1) राम्‌ दादा ! दादा 1 दादा (चौक कर तीव्रता से) वया है ? राम्‌ डाक है, दादा ! दादा यही रख दो । रामर जीहाँ। रख तो देगा ही । (रखता है) वह जो नया मरीज श्राया, हालत उसका ठीक नहीं । बराबर उल्टी, कै, वसन, डाक्टर कहता उसको” दौरा है । दादा ! दौरा तो घूमने को बोलता । उसका पेट घूमता... दादा (चीख कर) तुम नही जाप्नोभे रास जायेगा, दादा ! जायेगा नहीं तो श्रौर क्या करेंगा । पूरा श्राप ऐसा गुस्सा क्यो होता, श्रौर हम बता देताकि




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