श्री पट्टावली - परागसंग्रह | Shri Pattavali - Parag Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
547
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)फृत्प - रशविरावती
उपोद्धात :
“कल्प शब्द से यहां दशाश्रुतस्कन्बान्ठर्गेत “पर्यु कल्प समभनां
च!हिए । यद्यपि पर्युषणाकत्प दशाश्रुतस्कन्धका एक भ्रध्याय है, तथापि जेन
सम्प्रदाय में प्रस्तुन कल्प का प्रचार भ्रधिक होने के क।रण ददाश्रुत-स्कन्ध
की स्थविरावली न लिखकर हमने इसे '“कल्पस्थविरावली” लिखना ठोक
समभा है ।
“'कल्पस्थतिरावली” श्ायं॑ यशोभद्र तक एक हो दहै, परन्तु भवं
यशोभद्र के श्रागे इसकी दो धाराएँ हो गई हैं । एक संक्षिप्त भौर दूसरी
विस्तृत । संक्षिप्त स्थविरावली में मुल॒ परम्परा के स्थविरों का मुख्यतया
निदेश किया गयाहै। तब विस्तृत स्थविरावली में पटूषर स्थविरों के
भ्रतिरिक्त उनके गुरुश्नाता स्थविरोंको नामाबलि्यो, उनसे निकलने वाले
गण भ्रौर गरोंके कूल तथा शाखाभों काभी निरूपण किया है।
संक्षिप्त स्थविरावली में श्रयं वके शिष्य चार बताए है! उनके
नाम “भराय नागिल, भ्रायं पञिल, भ्रायं जयंत शोर प्रायं तापस” लिखे है।
तब विस्तृत स्थविरात्रली में प्रायं व्र के शिष्य तीन लिखे है, जिनके नाम
“्रायं व्रतेन, भाय पद्य भ्रौर प्रायं रथ” ह । इन दो स्थविरावलियों के
नीच जो मत-भेद सूचित होता है, उसके सम्बन्ध में हम यथास्थान
विवरण देंगे ।
“कल्प-स्यविरावली” भी प्रारभ से भ्रंत तक एक ही समय में लिखी
हुई नहीं है, जिस प्रकार श्रागम तीन बार व्यवस्थित किये गये थे, उसी प्रकार
स्थविरावली भी तीन विभागों में व्यवस्थित की हुई प्रतीत होती है । भ्रागमों
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