कौरवी - वाक्पद्धति और लोकोक्ति - कोष | Kauravi - Vakpaddhati Aur Lokokti - Kosh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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जीवन मे कुछ भी भ्रश्तीत नहीं है हाँ, यटि ययाय वो '्स्लौल
बतलान वी बुचेप्ट! वी जाय, तो वात दूसरी है । फिर प्रत्यक देशकाल
म निष्ट समाजे कौ मायताए एक समानं नही होती) रेसी दा म॑ प्रदली
लता वास्तव मे क्या ह दसवा निरय कठिनं होगा । तथाकथित सम्य
समाज जिन बाता वो श्रश्लीत वी सना देता है वे लॉक म वडेही तटस्य,
भवोध भाव से वही सुनी जाती हैं उनका तात्यय ऐसा कुछ कहकर
वामना कौ उत्तेजित करना नही केवल तथ्य को सुस्पष्ट एव प्रभावशाली रीति
है प्रवागित करना ही होता है। सौंदमशाहितया की भी ऐसी ही रप्टि है,
श्र इसलिए वह साहित्य में श्रश्लीलता को स्थिति स्वीकार नही कस्ते)
निष्कपत कहा जा सकता है कि लोकाभियक्ति (वाकु पद्धति, लोकोमित)
म दलील कु नही होता । न इनके वारण कभी कसी मन विवार को
उत्तेजना मिलती है न कोई श्रमगल होता है। घृणा श्रौर लज्जा का तो
इस सहज म कोई स्थान ही नही है । श्रत यदि यह प्रपत्ति कीजायकि
वाक्पद्धतिया श्रौर लोकोवितया मे श्रश्नीलता है तो वह निमूल निराधार
ही सिद्ध होगी, बयाकि इनकी विशेषता तो जन-जीवन का नियत्रण झ्ौर
माग दान बर व्यप्टि श्रौर समप्टि को उत्कप प्रदान करना है। लोकोक्ति,
वेषना श्रौर श्रोता दोना को उच्च स्तर पर रख देती हैं । वक्ता उसवो वोलते
समय नान गव का श्रनुमवक्रताहै तो श्रोता ज्ञानजुध जिनामु की भाति
प्रात्मतुष्ट होता है1
वाकपद्धत्तिया श्रौर लोकोवितियां को श्रध्ययन की दृष्टि से कई प्रकार
से विभाजित किया जा सकेता दै--सावारणतया इस प्रकार के विभाजन कं
भ्रघार इस प्रकार हैं--
१ क्षेत्रीय ।
२. विधयानुक्रम ।
३ वणानुक्रम।
क्षेत्रज वाक्पद्ति्यां एवे लोकोक्तिया श्रपने साथ स्थानीय रग लिए होती
है । प्रथमत एक क्षेत्र विशेष वी मापा (देशज) हौ श्रपने मं भिन होती है ।
यह भमिनता चार कोस पर पानौ बदले श्राठ कोर पर बानी' की लोकोवत्य
मुसार थोडी थोडी दूर मे ही यद्यपि दसी जा सकती है फिर भी एक ही
बोली के कई रूपा म कुछ न कुछ मुलभरुत साम्य भी रहता ही है 1 इसलिए
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