अशोक के धर्म - लेख | Ashok Ke Dharmlekh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न ` ममक इतिटास 1 यूं २५८६ से सिकम्द्रकी सत्य होने एर चन्रयप्तन हिन्दुच्रको संगठित करके उन यूनानियांक विरु वलवा किया जिन्हें सिकन्दर पथिमोत्तर प्रास्त तथा एंजाद पर श्रीक-शासन स्थिर: रखनेके लिय छोड़ गया था; इस चलवेका शकम नेता चन्द्रयु्त माय था ( ६ ) चलवा करनेके बाद त्पने मन्न्री चासक्य- की सहायतासे नन्दवशके '्पन्तिम राजाकों मार कर चन्द्रगुप्त इसवीं सनके पूर्व २२२ * अथवा विक्रमीय संवसके पूर्व “२६५ के लगभरा मगध राज्यके सिंहासनपर बैठा ( ६ ) उस समय संगथ राज्य बहुत विस्तृत था; उसमे कोशल ( अयोध्या, ) काशी श्ररदेश ( पश्चिमीय बंगाल ) तथा सग ( दिहार ) थे सब देश शामिल थे'( ७) चन््रप्त परः कलत ( कूल ) मलय, कारमीर, सिन्धु खोर पारस इन पाँच देराके सजाच्प्रोने पिल्ल कर हमला किया जिसका निवाररा उसने अपरं मस्ती तथा सहायकः चाक्यकी सदायतासरे किया{ ( ८ ) विदेशी यूना- मे जैग अ्रन्योष्ठे अधर पर थीयुष्त शाणे पाद जायसवाल सस ₹9 का सत है कि चन्द्रगुष्टक राज्यकास कदासिद मी खर एवे २२ चदझुसार दिक्रमीय संदत्‌क प्ुब २६८से प्ारम्म दुखा (10 पाव्य वतात्‌ 770८6८01, 4 6८ 80८6८ एव €0द९्‌.1912, 702. 3211-2) 1 सुद्राराझस, प्रथम ऋड्भू, श्लोक २० यशाः ~ चाशकः---रपखन्धयामस्मि मखिधिस्यो खा हस्य स्लेरखपजलोकस्व मध्यात भ्वागत्वा पश्य राशानः: परया सुदखरा साश्चसमनुषसंगसे । रे ख्या-- सतौत प्रिचत्रघमां मलयनरपविः स्षिंहनगदो मु सिंहः १ काश्मोरः पुष्कराष्ष: पर्तारजुमदिना देन्धवः (खिन्युरेश्ः सेघाख्यः पंचसोउस्मिन्पूथुतुरययसलः पारसीकािराध । नासन्बेषं लिखामि भ यमदसदुगः ख्द्रगुष्तः ममाप्टं ४




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