रास - पंचाध्यायी तथा भँवर - गीत | Ras Panchadhayayi Tatha Bhanwar Geet

Book Image : रास - पंचाध्यायी तथा भँवर - गीत  - Ras Panchadhayayi Tatha Bhanwar Geet

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~ १० - कीच [कि ली शच्ीच्ा न न ~ = न न ^ ~ जी नल नली श्रमर-गीत' में ७५ पद हैं जो रोला, दोहा श्रोर एक तीसरे छुंदांश के संयोग से बनाये गये हैं । इसके श्रतिरिक्त सुदामा-चरित्र श्रौर पदावली भी इनकी कृतियाँ मानी जाती हैं । = <~ ला ७ ~> + 9 0 क | (ख) काञ्य-समीक्षा ब्रजमाषा-काव्य-मर्मन श्री वियोगी हरि ने लिखा है-'भ्रष्टछाप' में यदि सूरदास सूर्यं है, तो नन्ददास निश्चय ही चन्द्रमा ह । ग्रष्टच्छापः के कवि ( सूरदास, कृष्णदास, कृम्भनदास परमानन्दनदास, नन्ददास, गोविन्दस्वामी चतुभुजदास, श्रौर छीतस्वामी ) हिन्दी के ब्रजभाषा-काव्य में श्रौर विशेषत: कृष्ण भक्ति-काव्य में श्रेष्ठ स्थानके प्रधिकारी हैं । इनमें नत्ददास का स्थान सूर के पदचात्‌ ही है । इस तुलना से नन्ददास के कवि-खूप की महत्ता का कुछ श्राभास मिल सकता है ! नन्ददास के ग्रन्थों में 'रास पंचाध्यायी' श्रोर भ्रमर-गीत' उच्च स्थान के ध्रधिकारी हैं । इन दो के कारण ही नन्ददाम गधिक प्रसिद्ध हैं प्रौर इन दो मे ही उनके काव्य की परिपूर्णता मिलती है । रास-पंचाध्यायी श्रीमद्‌भागवत वेष्एव कृष्ण-भक्तों का सवंस्व है । इसमें विष्णु भगवान्‌ के भ्रवतारो की लीला वशित है| श्रीकृष्ण की लीला इनके ६० श्रध्यायों में है, जिनमे से ५ श्रध्याय (२९६ से ३३ तक ) कृष्ण प्रौर गोपियों की रास लीला के हैं । पांच श्रष्यायों के कारण इसे “रास पंचाध्यायी” संज्ञा दी गई है । कविवर नन्ददास की 'रास-पचाध्यायी* काव्य-कृति का श्राधार भागवत के ये ही पांच प्रध्याय हैं । “रास-पंचाध्यायी' शाब्दिक ्रनुवाद नहीं, भाविक य स्वच्छन्द भावानुवाद है । भागवत के भ्रनुसार रास-लीला की कथा यों है-- शारदीय पूर्णिमा को रात्रि के भारम्भ में श्रीकृष्ण ने मुरली बजाकर मोपियों का भ्राद्वान किया । मोपियाँ भी सभी सांसारिक कमों का त्याग कर




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