ग्रह - नक्षत्र | Graha Nakshtra

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Graha Nakshtra by त्रिवेणीप्रसाद सिंह - Triveni Prasad Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खगोल पर इसका विस्तार समकने की सुगमता के लिए बढ़ाकर दिखाया गया है। शि दशक का शिरोविन्दु है थ खगोल का उत्तर शुव है । परमइत्त उप-दपू दशक का क्षितिज है पर दर्शक का शधघोविन्दु है । उ प द पू क्रमशः चितिज के उत्तर पश्चिम दक्षिण तथा पूर्व विन्द है। परमत््त उ-शि-द-श्र को दर्शक का याम्योत्तर दक्षिणोत्तर मंडल कहते हूं था परमदत्त प-शि-पू-्य को दर्शक का पूर्वापर मंडल 71706 ८1101 यथवा सममंडल है| खगोल का उत्तर श्रुच ध कषितिज से २५ ऊपर को उठा इुच्आा दं। खगोल का दक्षिण ध्रुव ध क्षितिज के दक्षिण विन्दु ढ से २५ नीचे होने के कारण झ्रदृश्य है । पू-वि-प-पु खगोल की घिपुबत्‌ रेखा हैं। विपुवत्‌ रेखा पर स्थित कोई भी तारा झ्पनी दैनिक गति से पूवि प पु यह इृत्त बनायेगा । इसे विपुव-वलय कहते है । समय की माप प्राचीनकाल में नाडिका्रा। में होती थी |. विपुव-वलय के झ्रंशा से समय का वोध होता था । अतण्व विपुव-चलय को नाडीवलय भी कहते थे । इसका श्राघा झश पू वि प चितिज से ऊपर रहता है तथा श्राथा अश प पु पू क्षितिज से नीचे । खगोल के उत्तराद्ध में स्थित तारा ख द्पने दैनिक भ्रमण में ज ख ज॑ ख यह बृत्त चनाता हैं । जिसमें तारा वर्तमान रहे वतंते वह उसका श्रहोरात्र इत्त है। ज तथा जज ये दोनों चिन्दु दर्शक के क्षितिज पर है। न्षितिज से ऊपर का भाग ज ख ज बृत्त के शद्धांश से श्रधिक है तथा नीचे का भाग ज॑ ख जो अ्रद्धाश से कम ।. तारा को तथा सगोल के उत्तर धुव थ में २५ से कम का श्रत्तर है । इसके फलस्वरूप २५ उत्तर श्रक्षाश पर इस तारा का दस्त ही नहीं होता । तारा ग खगोल के वियुव से उतना ही दक्षिण है जितना तारा ख उत्तर को है । तारा ग की परिक्रमा कर ग भा गा इस बृत्त पर होती है । के तथा भर ये दोनो बिन्दु दर्शक के क्षितिज पर हैं । चित्र से यह स्पष्ट हो जायगा कि जितना समय तारा ख नितिज से नीचे रहता है उतना ही समय तारा ग कितिज से ऊपर । खगोलिक दक्षिण घ्रुव घ से २५ से कम के अन्तर का तारा घी द्पनी पूरी परिक्रमा घनघ से क्नितिल के नीचे ही रहता है इसलिए २५ उत्तर शझ्रक्ाश से ऐसे तारे कभी दियाई ही नददीं देत । चित्र में दत्त घ पूघ प को उन्मदल कहते हैं। इस मटल पर रू सदा ६ बने यान तथा ६ बजे सथ्या को जाता है। इस दत्त का उत्तराद नितिज से ऊपर दथा दकन्षिशाद्ध चतिज से नीचे है सू० सि० ३/६ | यह प्रत्येक तारा जे श्रद्दोरात्र दत्त को दो समान भागों में संडित करता है। तारा क ख. ग तथा घ. टस चृत्त को क्रमश के का ये ख गा ग तथा घ घ विन्दुओों में छेदने है । प्रत्येक तागदत्त के इन चिन्दुद्धो से ऊपर तथा नीचे के स्श समान हैं । चिन्नसंरया २ में दर्शक ऐथ्वी की विषुवन रेखा पर है। सगोल का उत्तर व था क्षति के उत्तर बिन्दु 5 दे स्थान पर चला गया है। इसी मोति घ तथा द थि तथा वि. दर तथा पु. एक ही स्थान पर दा. गये है । क. सा. ग.घ चारो ही तारे झपने श्टोराव दत्त का ध्ाषा झश क्षितिज जे उपर तथा आधा यश नितित् दे नीचे व्यतीत फरतें हैं । सगोल वा उन्मंदल 6 00100. 1.06 क्ितित पर चला श्ाया है। घाचीन डाना था घत उन्ेटल 5. कि भारत में लका विपुदत्‌ रा पर टिपत माना लाना था धत उन्मंटल के पृचाद्ध पर रूप




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