लोकगीतों की सामाजिक व्याख्या | Lokagito Ki Samajik Vyakhya

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Lokagito Ki Samajik Vyakhya  by श्रीकृष्ण दास - Shree Krishna Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ^= ) श्रपने प्रिय गीतो को चुन कर उनका अध्ययन करे और उनके ममं तक पहुँचे । उ-हे इन गीतो मे रेखे तख भिक्ेगे कि वे चमत्कृत हो जायगे । जिन मिन्नोकी पुस्तको से मेने ये गीत सगरहीत किय है, उनके प्रति मै श्रामार प्रकट करता द| उनकी क्यारियो से मैने कुछ फूल चुन लेने का श्रप्राध रिया है | यह “त्रप्राधः में लिखित रूप में स्वीकार काता हूँ । पुस्तक के अन्त से परिशिष्ट 9 में समार प्रसिद्ध विदधान श्रकेडेमीशियन शोरोलव की श्रस्यन्त महस्वपूणं पुस्तक 'रशियन फोकलोर' के प्रथम अध्याय का भावार्थं दे दिया गया है । हमरे पाठक इसे सिद्धान्त' वाले श्रध्याय # पूरक के खूप मे स्वीकार करेगे | परिशिष्ट २ मे मेने लोकं सस्कृति के अध्ययन के लिए लोक सस्कृति समाज ' के निर्माण का मॉग की है और तःसबधी योजना का एक प्रारूप भी दे दिया है । मेरा विश्वास है कि यदि सरकार आर जनता दोनों श्रापस मे सहयोग कर तो यह योजना सफल हो सकती हे और सम्पूर्ण लोक सस्कृति का अध्ययन सम्भव हो सकता है । परिशिष्ट ३ के अन्तर्रत मैंने लोक वार्ता से सबधित सादित्य की एक सूची दे दी है। इस सूची के लिये मैं डाक्टर महदेव साहा, माई श्याम प्रमार तथा श्री सुरेन्द्रं पाल सिह का कृतज्ञ हू । इसै पुस्तक में ऐसे अनेक गीत है जिन्हे मैंने माई से सुना था उसके ॉसुझो से भींगे ये गीत मेरी आत्मा मे बसे हुए हैं। सोचा था यह पुस्तक माई को ही भेट करूंगा । पर पुस्तक उसके जीवनकाल में छुप न सकी । गत २७ अक्तूबर १४१५ इ- को वदद इम सब्रको छोड़ कर चली गयी । अब इस पुस्तक को देख कर किसकी श्रोखो मे स्नेह के श्रोसू छुलछुला आयेगे ? माई की यह देन अब उसी की पुण्य स्मत मे भेट हे । २ ङ, भिरुटोरोडः { इलाहाबाद य वी 34 1 कृष्ण दास




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