समयसार प्रवचन भाग - 1 | Samayasar Pravachan Bhag - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९4 तथापि पचमकाल के छान्ततक स्वालुभूति क्रा मागं श्विच्छिन्न र्ना दै, इसीलिए स्वानुमूति के उच्छष्ट॒ निमित्तमूत श्री समयसार जी के गम्भीर ाशय विशेष-विशेष स्पष्ट होने फे लिये परमपवित्र योग॒ वनते रदे है । अन्तचह्य परमपविन्र रोगों म प्रगट हए जगत के तीन महादीपक श्री समयसार, श्री श्मात्मख्याति ओर श्री ससयसार-भवचन सदा जयवन्त रदे { थीर स्वालुभूति के पथ को श्रकाशित करें । यह्‌ परम पुनीत प्रवचन स्वाुभूति के पन्थ को त्यन्त स्पष्टरूप से प्रकाशित करते है, इतना ही नदीं किन्तु साय ही सुसु जीवों के हृदय मे स्वानुमव कीं रुचि श्रौर पुरुषार्थं जाग्रत करके अशत सत्पुरुष के प्रत्यक्ष उपदेश जैसा ही चमत्कारिक कायै करते दै । श्रवचनों की वाणी इतनी सदज, भावाद सजीव दै कि चैतन्यमूतिं पूज्य श्री कानजी खामी के यैतन्यभाव ही मूर्तिमान होकर वाणी-प्रवाइरूप बह रहे हों। ऐसी त्यन्त साववाहिनी अन्तर-वेदन को उम्ररूप से व्यक्त करती, शुद्धात्मा के प्रति श्रपार प्रेम से उमराती, हदयस्पशीं वाणी सुपात्र पाठक के हृदय को र्षित कर देती ह, श्रौर उसकी विपरीत रुचि को क्ती करके झुद्धात्म रुचि जागृत करती है । प्रवचनों के अ्रत्येक धृ में झुद्धाटम महिमा का अत्यन्त भक्तिमय वातावस्ण गुजित दोरदा है; और प्रत्येक शब्द में से मधुर श्नलुमव-रस फर रदा दै । इस थुद्धात्म भक्तिरस से ओर अनुभवरस से मुमुक् का हृदय मीग जाता है और वदद झुद्धा्मा की लय में मग्न द्ोजाता है, झुद्धामा के 'अतिरिक्त समस्त भा उसे तुच्छ भासित होवे हैं और पुरुषाथ उभरने लगता है । ठेसी अपू चमत्कारिक शक्ति पुस्तकाकार बाणी मे इसप्रकार दिव्य तत्वज्ञान के गहन रहस्य अमूतसरती ध सममकाकर और साथ दी झुद्धात्म सुचि को जामत करके पुरुषार्थ का ब्याह्मान; प्रत्यक्त ४ कौ दिखलाने बाले यद्‌ प्रवचन जैन सादित्य मे ्दुपम ६ । = खख भत्यक्त सदयुरुष से बिलग दै पं




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