आचार्य नरेन्द्रदेव (युग और नेतृत्व) | Acharya Narendra Dev (yug Aur Netratva)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २ ) मई सम्‌ १९३४ में जो सोशल्स्टि कम्बेंशन पटना में हुआ, उसके अध्यक्ष नरेन्द्रदेवजी दी थे । उसके बाद उन्होंने आजीवन समाजवादी आन्दोलन का सेतस्ब किया । इसका दिवरण काफी विस्तार से इस पुस्तक दिया गया है! यद्यपि किसी एक व्यक्ति की. जीवनी द्वास सारे समाजवादी आन्दोलन का समुचित ज्ञात असम्भव है, फिर भी इस जीवनी के पढ़ने से समाजवादी आन्दोठन के इतिहास की रूपरेखा का काफी ज्ञान जरूर हो सकता द ¦ अगस्त सन्‌ १९४५ मे राष्ट के स्वतन्त्र होने के बाद्‌ भी राजसनत्ता का मोद द्योडकर जिस निष्पहता से नरेन््रदेवजी ने राष्टरकी सेवाकी तथा राष्ट्र की विभिन्न समस्याओं को सुख्मानें के छिये जनता के समक्ष सुकाब उपस्थित किए उनका विस्तार से उल्लेख इस पुस्तक में किया गया है। इस पुस्तक में जिन समस्याओं का जिक्र है. उनमें से अधिकांश का समाधान होना अब भी बाकी है । उनके सम्बन्ध में नरेन्द्रदेवजी के बिचार अब भी सजीव हैं । उनका अध्ययन आज भी उतना ही जरूरी है. जितना पहले था । इस पुस्तक के अन्तिम चार अध्यायों में नरेन्द्रदेवजी के नेतृत्व का, उनके विचारों का संश्ेप में विद्लेषण किया गया है। उसमें बताया गया है. कि व्यक्ति, समाज, शिक्षा, संस्कृति, सष्ट्रीयता, मानवता, समाजवाद, जनपन्त्र, धर्म-निरपेक्षता आदि महस्वपूणे विष्यो पर्‌ नरेन्द्रदेवजी के क्‍या सिद्धान्त थे । इसमें यह भी बताया गया है कि माक्संवाद को मा्क्सबादी नरेन्द्रदेबजी की क्या देन है । इन अध्यायो को पढ़ते से सरेन्द्रदेवजी द्वारा प्रतिपादित जनतान्त्रिक समाजचाद, ज़नतान्त्रिक शिक्षा पद्धति तथा अन्य सामाजिक सिद्धान्तों का अच्छा ज्ञान हो सकता है। पर उनके विचार तो सारी पुस्तक में बिखरे हुए हूँ, अत: सारी पुस्तक को पढ़कर ही उनके सिद्धान्त भौर नेवल का समुचित परिचय हो सकता है } चास्तव में सारी पुस्तक ही जनतास्त्रिक समाजबाद की एक पोधी है. । इस पुस्तक में नरेन्द्रदेवजी के चरित्र और व्यक्तित्व के विकास का भी विश्लेषण किया गया है । उनके जीवन का विकास इतिहास की घटनाओं की पाश्वेभूमि में हुआ । अत सारी पुस्तक पढ़ने पर दी ढीक-ठीक पता चढ़ सकता है. कि किन परिस्थितियों में उनके जीवन




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