पचपन का फेर | Pachpan Ka Fer

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२०५ नन्दा चोपडा-~ पचपनका फेर व्यापारमें लगाया, दस हजारकें शेयर यरीद लिये । न प्रर्मे कुछ मिला, न उसगेसि कुछ वसूल हुमा, वस्तिं पया ही फंस गया । म तो कहता हूं वही सात हजार रपये भच्छे रहे जो लड़कीकी शादीमें यर्च किये । कम्यूट न फराता तों पाँच सौ रुपये महीने तो श्राते । पेन्यन पाता भी जीवनमें नर उनसर्ने पैदा कर देता ई) तुमको जवरदस्ती यह महसूस कराया जाता है कि अब चुम बूढ़े श्रौर वेकार हों गये, चाहे तुम कितने ही हृष्टपुप्ट वयौ न हो ! मैं तो समझता हूं यह भ्रसूल ही ग़लत है कि मनुप्य पचपन साल की उमरमें रिटायर हो । हाई कोटंके जजोंकों देखो--साठ पैंसठ साल तक काम वारते हैं । हरगोपाल--[भुसकराकर] श्रौर हमारे नेता तो इस उमर पर घ्रा कर यादी गन्दा- करते हँ 1 साट सत्तर सालक हौ कर मन्त्री वनते है ! रिटायर होते तो इनको न कभी किसीने देखा न सुना । ऐसे तो बहुतसे लोग है । डाक्टरोंको ही देख लो । ज़वानकों कोई पूछता नहीं । कहते हैं, श्रनाड़ी है, अनुभव नही, चाहें वह्‌ कितना ही योग्य वयो न हो । हुरगोपाल--तो हम सरकारी नौकरोंने ही क्या अपराव किया हूँ जो हमें सन्दा इतनी जल्दी नौकरीसे प्रलय कर दिया जाता है? बेकार ही अपनी हीनताका, चाहे शारीरिक हौ या मानसिक, श्रनुभव हने लगता है 1 ठीक कहते हो, दोस्त । देख लो, जो सोग हमारे श्रागै पीले फिरा करते थे वट्‌ भी श्रव परवा नही करते, तो दूसरोंकी भली कही । मैने तो इसी उलझनसे निकलनेके लिए एक दो जगह नौकरी भी की । इरगोपाल--अ्च्या !




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