सामाजिक मनोविज्ञान | Samajik Manovigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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च्व सामाजिक मनोविन्नान को रूसी मैदानोंसे संबद्ध करते हैं। जबकि लेबन को हंगेरियन मँदानों में उनके वास्तविक स्वभावकी व्याख्या मिल जाती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोणसे निणंय करनेमें विशेषकर लोक मनोविज्ञानकी बहुतप्री' पुस्तकोंके सन्दिग्ध चरित्रको सिद्ध करनेंके लिए सैकड़ों उदाहरण दिए जा सकते हैं। सारे विषय 'एक सावधान विश्लेषण श्रौर उचित समस्याश्ों पर स्पष्ट कथन, तथा एक सामान्यतया मानी गई लेखप्रमाण श्ौर निरीक्षण विधिकी श्रावद्यकता है । ३. पारिणामवादके विकास श्रौर उत्पत्ति सम्बन्धी दृष्टिकोण जो महत्व बढ़ रहा है, उसने तुलनात्मक मनोविज्ञानके बहुमूल्य कार्यको प्रारम्भ किया है, | जिसका सामाजिक मनोविज्ञानकी समस्याश्ोंसे महत्वदाली सम्बन्ध है। जैसे बालडविनको उत्पत्ति सम्बन्ध(26016{16) विधि (“90618121 छपाा- 681 {111 {76{8{10115 } 'प्रारस्मिक श्रवस्थाश्रोमें मनुष्यके मनोवैज्ञा- तिक विकासमें छान-बीन करती है, जिससे उसकी सामाजिक प्रकृति श्रौर उस 'सामाजिक संगठन पर जिसमें उसका एक भाग है प्रकाश पड़ सके। इसी भाग _ में रॉयस (1३०५८) की पुस्तक श्र कुछ बातों में डा ० मेंकूड्युगल को काम भी है गौर इसमें सन्देह नहीं कि उन्होंने व्यक्ति श्रौर समाजके बीचके सच्चे -सम्बन्ध श्रौर व्यक्तिके द्वारा श्रपनी चेतनाकी प्राप्तिमें सम्मिलित प्रणालीके -सम्बन्धमं स्पष्ट विचार प्राग्त करनेमें सहायता दी है। ॥ ४. तुलनात्मक मनोविज्ञानका विकास, श्रौर श्रन्तरावलो कनके विरोध मं व्यवहारके श्रध्ययनके प्रति बढता हृग्रा म्रवधान कुं श्रंशमें सामाजिक मनोवेज्ञानिकोके एक नए सम्प्रदायकी उत्पत्तिके लिए उत्तरदायी हू । वह्‌ मनो- 'बैज्ञानिक सामाजिक जीवनमें सम्मिलित मृलप्रवृत्तिशील, संबेगसील श्रौर श्रचेतन बातोको प्रकाशमें लानेमे रुचि रखते हँ। इश्च सम्प्रदायका श्रारम्भ बेजहांट्से हुश्रा कहा जा सकता ह, जिसने सामाजिक प्रणालीके श्रनुकरण के महत्त्व पर ज़ोर दिया। उसके बाद टाडं का नम्बर है जिसने इसश्राधार 'पर एकं बृहत्‌ समाज विज्ञान सम्बन्धी पद्धति कार्यान्वितं की श्रौर जिसका 'अनुकरण श्रधिकतर श्रमेरिकन समाज विज्ञानवेत्ता रोस ने किया। ले बां के प्रचलित भ्रन्थोमिं वही प्रवृत्ति प्रदर्शित होती है। प्रो० ग्राहम वालेस की. 'पहलेकी पुस्तक (“पपाद पारा रिणघिटड,” 1908) भी “चरित्रमें बुद्धिवाद विरोधी थी श्रौर ऐसी प्रणालियों जसे संकेत, श्रनुक'रण,




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