बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन | Bundeli Ka Bhasha Shastriya Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
253
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ८ )
क्षेत्रीय भापा अथवा बोली के लिए 'वुदेलखण्डी' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम
सर जाजं ए० ग्रियर्यन (30 ७ ¢ (500) द्वारा किया हुआ जान पडता
है, क्योकि १८४३ ई० में मेजर आर० लीच, सी० बी° (14201 २1.660,
0 8)ने इसे बन्देरखण्ड की हिन्दी बोरी ( सिफापप्त७6 तान्तां
पतला, 80682) कहा है 1 स्थानवाची होने के कारण अधिक उपयुक्त होते
हुए भी यह नाम श्रुति-मधुर नही कहा जा सकता, अतएव तुलना मे अल्पा
क्षरात्मक 'बुन्देली' शब्द का प्रयोग समीचीन समझा गया है । भाषा-व्यापकता
की दृष्टि से उक्त सीमा मे कुछ परिवर्तन आवश्यक होगे, जैसे नमंदा के
दक्षिण मे स्थित “छिंदवाड़ा, 'सिवनी' तथा 'बैतूल' के जिले मराठी-मिश्रित
होते हुए भी बुन्देली-भाषा-भाषी ही ठहरेगे, साथ ही, पूवे-स्थित बदा जिला
बुन्देली के अन्तर्गत नही लिया जा सकता ।
स्वाभाविक प्रान्तो की पहिचान भाषा और बोली की एकता से ही नहीं
होती, अपितु इसके लिए भौगोलिक एकता और पिछले इतिहास मे एक साथ
रहने की प्रवृत्ति पर भी ध्यान देना होता है । इस दृष्टि से यहाँ बुन्देलखण्ड
की भौगोलिक गठन पर विचार कर सकते है --'विन्ध्याचल के उत्तरी और
दक्षिणी तट के बीच इतना बडा विस्तृत देश और रचना में वह उत्तर भारत
के मैदान से इतना भिन्न है कि उसे उत्तर भारत मे नहीं गिना जा सकता,
विन्ध्य पेखला को दक्षिण मे गिनना तो किसी को अभीष्ट न होगा ।>८ > > >
कलकत्ते से सूरत तक का रेल-पथ उसी रेखा को सूचित करता है । वहू
विन्ध्यमेखला और दक्षिण भारत की ठीक विभाजक रेखा है ।'* उपरिकथित
बुन्देली भाषा की उत्तर-दक्षिण सीमा इस भौगोलिक सीमा का अक्षरशः
अनुकरण कर रही है ।
'समूची विन्ध्यमेखला के पश्चिम से पूरब, गुजरात के अतिरिक्त, पॉच
टुकड़े है .---१ राजपुताना २ मालवा का पठार ३ बुन्देलखण्ड ४. बघेल-
खण्ड-छत्तीसगढ ५ झाडखण्ड, बुन्देलखण्ड मे बेतवा ( वेत्रवती ), धसान
( दद्यार्ण ) और केन ( शुक्तिमती ) के कॉठे, नमंदा की उपरली घाटी और
पचमढी से अमरकण्टक तक ऋक्षपर्वत का हिस्सा सम्मिलित है, उसकी
पूर्वी सीमा टौस ( तमसा ) नदी है । >> >८ >( इस प्रकार बेतवा और
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२ मारतसूमि और उसके निवासी-जयचन्र बिद्यालद्ार, पू० ६४ ।
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