भूगोल के भौतिक आधार | Bhoogol Ke Bhautik Aadhar

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Bhoogol Ke Bhautik Aadhar by रामनाथ दुबे - Ramnath Dube

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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, के लेखों से, महत्वपूर्ण सत्य का उद्घाटन हुआ है। उनका संबंध भूकम्प की लहरों के एक्‌, स्थान से द्‌ सरे स्थान जाने के पथ तथा गति से है। | « सब से पहले यह पता लगा कि धरातल पर चलने वाली सारी' लहरों की गति एक सी होती ह्‌, किन्तु पृथ्वी के अधिक गहरे भागों में से होकर जाने वाली लहरों की गति विभिन्न होती है। लगभग १,८०० मील की गहराई तक गति निरन्तर बढ़ती जाती है, परन्तु इससे अधिक गहराई पर एक सी द्हती हूं । अर्थात्‌, लगभग १,८०० मील की गहराई के आस-पास कहीं पर दोनों भिन्न कटिबन्धों में विक्षेद्ध है । ऊपरवालें कटिंबन्ध के गुण असमान हैं, नीचेवाले के एक समान रहते है । कम से कम भूकम्प की लहरों की गति से सो ऐसा ही प्रतीत होता हैं । इससे पहली बात तो यह विदित होती हे कि बेरिसिफियर की सीसा क्या होगी । इसकी ऊपरी सीमा धरातल से लगभग १,८०० मील की गहराई पर लगानी चाहिए ! चित्र नम्बर ३ से निम्नलिखित प्रकट हें : पृथ्वी की बनावट धरातल की गहराई ६२ मील पायरॉसफियर की गहराई ६२ से १,८०० मील बैरिसफियर की गहराई १८.०० मील के नीचे नवोनतम विचारों के अनुसार, पृथ्वी का केन्द्र एक चिपकेनेवाले (प्लास्टिक) पदार्थ से बना हुआ समञ्चा जाता है । यह चिपकना पदाथ अत्यंत अधिक दबाव के कारण कम्पन होने पर ठोस का सा व्यवहार करता ह! परन्तु यह ध्यान रखना चाहिए कि पृथ्वी के भोतर का ज्ञान बहुत कुछ काल्पनिक है । पुथ्वी के भीतर अधिक से अधिक गहराई जहाँ मनुष्य पहुँच सका है, केवल २०५२१ फीट है । यह अमेरिका के एक तेल के करें में है । महाद्वीप तथा महासागर पृथ्वी का बाहरी पत्तं महाद्वीपों तथा सागरों में बँटा हुआ है। इनकी उत्पत्ति तथा विश्ञेषताओं ने उतना ही मतभेद खड़ा कर दिया है जितना स्वयं पृथ्वी की उत्पत्ति ने । महाद्वीपों तथा महासागरों की उत्पत्ति से सम्बन्ध रखनेबाली बहुत सी साध्यों में से अधिक महुत्ववारी साध्ये यही दी जाती हं । सभी भूतत्ववेत्ता इस पर सहमत हं कि वह पदार्थ जिससे महाद्वोप बने हं महासागरों के स्तर मं नही मिलते हं । महासागरं मे मिलने वाले पदार्थ लाल रंग के हैं जो पृथ्वी के महाद्वीपों में नहीं है । पृथ्वी का वाह्म रूप उसकी प्रारंभिक दना कौ गेस के ठंडे होने से बना है । भूतत्ववेत्ता इसी कारण, पिघले हुए लोहे का उदाहरण देकर पथ्चो को बनावट को समझाते हैं । पिघढे हुए लोहे का सबसे भारी भाग तली के पास पड़ा रह जाता है, उससे कुछ




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