दृष्टान्त - सागर भाग - 1 | Drishtant Sagar Bhag - 1

Drishtant Sagar Bhag - 1 by हनुमानप्रसाद शर्मा - Hanuman Prasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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% प्रथम- माग + ७ हमारे लिये वश्य लायें । किसी ने लिखा कि वद्दां की पंचलरी बहुत श्रच्छी दोती ह॑, श्राप श्रवश्य लाय । किसी ने लिखा वदां को फुनवर बढुत शच्ड्री हाती हैं, श्राप अवश्ल लाये । इस प्रकार सम्पूर्ण रानियों ने नाना प्रकार की वस्तुये लिखो, पर पक रानी, ने यह लिखा कि -'' मुभे किती वस्तु की अ'वश्यकता नहीं मुे ता बहुत काल से आपके दर्शन नहीं मिले, आपके दर्शनों को व्ावश्य कता है सा दासी को आ झतार्थ की जिये ।”' राजा ने सम्पृं रानियोौ केः पत्र प्रहे श्रौर उनकी याचन्मश्रो क श्रचमार भ्रृत्यो से वस्तुये मंगवाई और अपना इच्छाजुसार भी जो चाहा यह मंगवाया | घर आतेही उन्होंने सम्पूर्ण रानियां के प्रार्थना पत्र खो न झीर जिसने जो वस्तु मांगी थी उसको वह वस्तु दी । शेष वस्तुश्रा को, जिन्दे राजाजी श्रपनी इच्छानुसार लाये थे, लकर उस रानी क॑ ग्रह में गये जिससे लिखा था कि में केवल आपको चाहती ,' । यह देख अन्य रातियां ने बहुत कुछ ई्पा की नौर सबने महाराजा से कहा कि -“महाराज, टम लागा ने क्या व््रपराघ किया था, जो अप हमारे यहाँ नहीं आये झोर हम को क्यों एक ही पक चस्तु दी गदइ ? इस रानी का श्रापन क्यों बहुत सी वस्तुयें दीं !” महाराज ने उत्तर--“तुम श्रपने-अपने प्रार्थना पत्र देखा, तुम ने जिसे चाहा वह नुम्हे मिला श्लोर इस रानी का प्राथना पत्र देखा, इसने जिसे चाहा वह इसे मिला ।”' बस इसी प्रकार ससार में जो मनुष्य जिस वस्तु की उपा- सना करता है उसका परमेश्वर पड्टी वस्तु देता है--र्थात्‌ रुपये की उपासना करन वाले को रुपया, स्त्री की उपासना वाले को स्त्री, मिट्टी की उपासना चाले को मिट्टी, जल की उपा-




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