सामवेदीय ब्राह्मण ग्रन्थों का सांस्कृतिक अध्ययन | Samvediya Brahaman Grantho Ka Sanskritik Adhyayan

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Samvediya Brahaman Grantho Ka Sanskritik Adhyayan  by मंजूलता शुक्ला - Manjulata Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 करते हैं या विचारते हैं अथवा विद्वान होते हैं अथवा सत्य विद्या की प्राप्ति के लिए प्रवृत्त होते हैं। ' डॉ0 वाचस्पति गैरोला के कथनानुसार “वेद शब्द वैदिक युग मेँ वाङ्मय के पर्यायवाची शब्द के अर्थ म प्रयुक्त होता था, बाद में ब्राह्मण काल की रचनाओं के साथ सूत्र शब्द, स्मृति युग की रचनाओं के साथ पुराण शब्द जोड़ा जाने लगा | * इस प्रकार वेद शब्द प्राचीनकाल में 'ज्ञान' के अर्थ में प्रयुक्त होता रहा है किन्तु आपस्तम्ब मे इस शब्द का प्रयोग ज्ञान' के अतिरिक्त एक और अर्थ में प्रयुक्त हुआ प्रतीत होता है जिसके अनुसार 'मंत्र' और ब्राह्मणः भाग को वेदः कहा जाता था- “मन्तरब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम्‌ । ° किन्तु वेद न तों करान के समान धर्मग्रन्थ हे ओर न बाइबिल' एवं श्रिपिटक' के समान महापुरुषों के वचनो का सग्रह हे। वेद शब्द से वह ईश्वरीय ज्ञान अभिप्रेत है जिसके अन्तर्गत वे समस्त वाङ्मय सग्रंहीत हं जो शताब्दियों से नहीं बल्कि सहस्नाब्दियों मेँ जाकर महर्षियों द्वारा उपलब्ध हुए हैं । 1- 'विदन्ति-जानन्ति, विद्यन्ते-भवन्ति, विन्ते विचारयति, विन्दन्ते-लमन्ते सर्वे मनुष्याः सत्विद्यां यैर्येषु वा तथा विद्वांसश्च भवन्ति, ते वेदाः ।“ - स्वामी दयानन्द सरस्वती -ऋग्वेदभाष्यभूमिका, पृष्ठ - 51 2-- 0 वाचस्पति गैरोला- “संस्कृत साहित्य का इतिहास - पृष्ठ संख्या 32 3- आपस्तम्ब परिभाषा, 314




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