पद्माकर - पचामृत | Paddhakar Pachamrit
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
492
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विश्वनाथप्रसाद मिश्र - Vishwanath Prasad Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ठ पद्माकर-पंसास
कवियों की चाटुकार-दृतति गौर उद्दीस हो उठी, थे केवर द्रवारों
महाराज की 'उमरि द्राज्ञ' की वांछा करने रगे । कविर्यो छी कव
भष्टाराज > दिरूबहराव की चीज बनी, उन्हें कतब्यपथ पर लानेवासी नह]
बड़े दरबारों की नकछ छोटे दरबारों में भी होने लगी । जमीदाः
भौर रसो का शगछ नाथिकाभेद की बारीकी पहचानना दुभा, कविः
खा सदयं नहीं । छारुची कवियों ने उन्हें इस रस में खूब लुबोय
ऐसा डुबोया कि उन्हें साँस लेने की भी फुरसत नहीं दी । कथियों के दंग
गौर अखाड़े जुटने छगे, समस्यापूर्तियों की कठाबाजियाँ दिखाई जः
लगीं, राजा साहब की वीरता के वणंन के रिय भासमान से उपमा
डतारे जाने रुगे, ब्रह्मांड छाना जाने रगा । नायिका की सृङ्गमारत
कटि की क्षीणता ओर विरह की भादा के निरूपण में हुवा मी किन
की नीव दी जाने ठगी, कपना के घोडे स्वग॑-पातार एक करने कगे
ऐसी परिस्थिति में उत्पन्न ोनेवाढा कवि यदि देशद्शा और अनस्थ
मागं के निरूपण मे लगता भी तो उसे पूछनेवाछा कोई नहीं था । सं.
छोग समाज से पीछा छुड़ाकर दूर खड़े हो गए धे, पारिवारिक स्ट;
रेटियों के छाछे उपस्थित कर दिए थे। कवियों की दरबारों में ज॑
दृति ध गदं थी उसे छोडकर वे एक् दिनि भी अपमा काम मही चा
सकते थे । सबसे बढ़कर तो इस नशे का चस्का था, जो इतना बदु गय
था कि उसो मे उन्हं मज्ञा माने उगा था । इसी से उस समय कं कति उर्स
हषा मे उड़्ते रहे, उसके प्रतिकार का किंचिन्सात्र भी प्रयक्ष नहीं किया
पद्माकर भी इसी परिस्थिति में उत्पन्न हुए थे । उनमें काभ्य.परतिम
चाहे जेसी रही हो, वह आध्यात्मिक बर अवधय' नहीं था लिसके भरोरें
असाधारण कवि समाज की नकेरु भपने हाथ मे ठेकर रसे अपने अनु
कर शुमा चद्वे हैं । . परंपरा के गेम मे पाग रइनेवाछ्ठा कवि भर्म
परिस्थिति का जजार रँवकर एक तिलः भी इधर से उधर नहीं दे
सकता । इसी से पश्माकर जहाँ के तह्दाँ पढ़े. रहे, वे आगे नहीं बढ़ सके:
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