टूटे सपने | Toote Sapne
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
230
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज तन्त
९४ ट्टे सपने
गली प्रायः सूती थी | इक्के-दुक्के लोग दही चल रहे थे । गोपीनाथ ने
दौड़ बन्द न की । दौड़ता गया, दौड़ता गंया | आखिर एक संभ्रान्त
व्यक्ति से टकराया तो उन्होंने उसे पकड़ लिया और सांत्वना के स्वर में
बोले--'क्या हुआ ! क्यों इस तरह घबराये हुए भागते चले जा रहे हो ?'
गोपीनाथ का चेहरा पसीने से तर था, आँखें फटी थीं श्र छाती
ऊपर-नीचे हो रही थी । उसकी जुबान से एक शाब्द न निकल सका |
कठ सू गया था |
मलेमानुस ने पीठ पर हाथ रक्ला ग्रौर स्नेह से कहा--'होश मे
प्राश्रो, बेटे ! किंसी विपदा मे फंस गये थे श्राग्रो, इधर श्राश्रो | हाथ
, पकड़ कर ले गये सामने । श्रपनी बैठक में ला बिठाया | नोकर को बुलाया
और हुक्म दिया--^्चाय श्रौर नाश्ता लाश्रो |: फिर गोपीनाथ के बलों
पर घूल लगी देखकर बोले--“पहले पानी लाश्रो लोटे में |
न वि
श्रान्त-क्लान्त होकर दो घंटे बाद साथी के डेरे पर पहुँचा । शिवराम
बनियान में साबुन लगा रहे थे । इन्हें. देखते ही पूछा --“बनवा आये
इजामत १”
वनवा श्राया माई |
केसी वनी £
हँस कर बोले--“च्छी बनी |
'दिर बहुत लगी £
“्रच्छी तरह हजामत बनने में तो देर लगती ही है !'
शिवराम ने बनियान धोकर श्ररगनी पर सूखने को डाली । फिर
पास श्राकर बोले--'देखूँ * और प्रिय मित्र का सिर घुमा-फिरा कर
कहा--'बनी तो अच्छी है । फिर प्रसन्न भाव से पूछा--'बोलो, क्या
खाश्रोगे १ शाम कौ तो वहम चलना है ¦ माल उड़ेंगे खूब !”
कहो १
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