टूटे सपने | Toote Sapne

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Toote Sapne by श्री दिव्जेन्द्रनाथ मिश्र - Shri Divjendranath Mishr

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री दिव्जेन्द्रनाथ मिश्र - Shri Divjendranath Mishr

Add Infomation AboutShri Divjendranath Mishr

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ज तन्त ९४ ट्टे सपने गली प्रायः सूती थी | इक्के-दुक्के लोग दही चल रहे थे । गोपीनाथ ने दौड़ बन्द न की । दौड़ता गया, दौड़ता गंया | आखिर एक संभ्रान्त व्यक्ति से टकराया तो उन्होंने उसे पकड़ लिया और सांत्वना के स्वर में बोले--'क्या हुआ ! क्यों इस तरह घबराये हुए भागते चले जा रहे हो ?' गोपीनाथ का चेहरा पसीने से तर था, आँखें फटी थीं श्र छाती ऊपर-नीचे हो रही थी । उसकी जुबान से एक शाब्द न निकल सका | कठ सू गया था | मलेमानुस ने पीठ पर हाथ रक्ला ग्रौर स्नेह से कहा--'होश मे प्राश्रो, बेटे ! किंसी विपदा मे फंस गये थे श्राग्रो, इधर श्राश्रो | हाथ , पकड़ कर ले गये सामने । श्रपनी बैठक में ला बिठाया | नोकर को बुलाया और हुक्म दिया--^्चाय श्रौर नाश्ता लाश्रो |: फिर गोपीनाथ के बलों पर घूल लगी देखकर बोले--“पहले पानी लाश्रो लोटे में | न वि श्रान्त-क्लान्त होकर दो घंटे बाद साथी के डेरे पर पहुँचा । शिवराम बनियान में साबुन लगा रहे थे । इन्हें. देखते ही पूछा --“बनवा आये इजामत १” वनवा श्राया माई | केसी वनी £ हँस कर बोले--“च्छी बनी | 'दिर बहुत लगी £ “्रच्छी तरह हजामत बनने में तो देर लगती ही है !' शिवराम ने बनियान धोकर श्ररगनी पर सूखने को डाली । फिर पास श्राकर बोले--'देखूँ * और प्रिय मित्र का सिर घुमा-फिरा कर कहा--'बनी तो अच्छी है । फिर प्रसन्न भाव से पूछा--'बोलो, क्या खाश्रोगे १ शाम कौ तो वहम चलना है ¦ माल उड़ेंगे खूब !” कहो १




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now