विद्यापति | Vidayapati

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Vidayapati by प्रो. जनार्दन मिश्र - Prof. Janardhana Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ८ ), नहीं है । श्रीमद्धागवत कृष्ए-कथा का आधार-्तम्भ समस जाता है। उसमें राधा का नाम नदी आता । यह ब्रह्मवेवते ' पुराण है जिसमे पहले-पहल कृष्ण के साथ सम्बद्ध होकर राधा का नाम श्राता है। जह्य, विष्णु अर वायुपुराण में गोपियों की च्चा बहुत ही साधारण रीति से की गह है। वाद्‌ के भक्त कवियों की रचनाओं में इनका जैसा स्वरूप है उसका आंशिक रूप भी इन पुराणों मे देखने को नही मिलता । इससे स्पष्ट है कि साहित्य में राधा और गोपियों का भगवान्‌ कृष्ण के साथ जो सम्बन्ध देखते है वह्‌ मक्त ओर कवियों की कल्पना से प्रसूत ओौर ऐतिह्ासिकता-विद्दीन है. । जिस समय विद्यापति अवतीणे हुए थे उस समय भागवत तथा ब्रह्मवैवतं पुराणोक्त कृष्ण-मक्ति वा राधाकृष्ए-भक्ति का प्रचार हो चुका था । जयदेव के गीत-गोचिन्द्‌ की रचना हो चुकी थी | इस प्रंथ की प्रस्तावला मे दी कवि ने लिखा है : यटि हरिस्मरणे सरसं मनो यदि विलासकलायु कुत्हलम्‌ । मधुरकोमलक्रान्तपदावली श्रु तदा जयदेवसरस्वतीम्‌ ॥ इसका भावाथ यह है कि यदि विलासकला के द्वारा हरिः स्मरण करना हो तो जयदेव की सरस्वती रथात्‌ गीतगोविन्द से यह्‌ प्रयोजन सिद्ध होगा । पूजा क समय वेष्एव गीत-गोविन्द्‌ के पद कीर्तन की तरह गाया करते थे। सायांश यह कि ख्री श्मोर पुरुष के रूप में जीवात्मा और परमात्मा के सम्बन्ध को सान कर भक्ति करने वाले सागे का प्रचार हो चुका था । उस युग में वैष्णव मत के प्रबल प्रचार ने इस मत को और भी उत्तेजना दी । उस समय भक्तिके इस मागं के व्यापक प्रचार का एक रौर कारण हुआ । मुसलमानों के भारत-विजय के साथ-साथ सूफी




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