पद्य - प्रसून | Padya Prasun
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
287
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध - Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कवि-परिचय
बाप को मधुर जचा, उसे आप न सादर अपनाया है । आप
संस्कृत वृत्त द्रतविलम्बित श्रौर मन्दाक्रान्ता लिखते हैं
बढ़े ढंग पर चौपदे और छपदे की रचना करते हैं, हिन्दी
के छप्मे और दोहे बनाते हैं, तो बंगला वृत्त 'पयार' का भी
प्रयोग करते हैं । और, सो भी, पूरी सप्दछता के साथ ।
उपाध्याय जी पूरे शब्द-शिल्पी हैं । झापके एक एक
शब्द चुने-चुनाये नपेतुले होते ह । जहां श्राप्रन केवल.
संस्कत की ही सरिता बहाई है, वहां भी --उस सरिता-स्रोत
पर भी-उापकी सुन्दर शब्द-तरंग-माला अठखलियां करती
दीख पढ़ती है । “'बनलता' आर 'माघुरी' नामकी कविता
पाठक पढ़ देखें ।
यहां एक बात याद आती है। इस 'पथ-प्रसून' की
छुपाई के सम्बन्ध में इन पंक्तियों के लेखक को आ्रापकी
सेवा में बार बार जाने का मौका मिला है ।. “दिव्य दोहे”
का विषय: विभाजन करना था । में जल्दी मेधा) मेरी
शीघ्रता देख कर आपने मेरे अनुसेघ पर शीघ्र हीं विषय-
विभाजन कर दिया । एक विषय का नाम रखा ग्रा
पुष्प-क्यारी ! किन्तु जब दूसरे दिन में पुनः पहुँचा तो आपने
कहा- देखिये कल जो कापी आप ले गये थे उसका शी्पेक
पुष्प.क्यारी न रख कर कुसुम-क्यारी' रत्य दोनों के
र
कि
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