सती सारन्धा | Sati Sarandha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sati Sarandha by शिवनारायण मिश्र - ShivNarayan Mishr

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शिवनारायण मिश्र - ShivNarayan Mishr

Add Infomation AboutShivNarayan Mishr

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रेस की असाव धान पंक्ति अथुद्ध ( जो छपा है (ले 84 „^© ०9 +© 092) 8) (य हः 0 3 > + 2 हा ० +< व + 0 क © „^5 सद्धा ज्य दना चाहम जिसके ८5 {जिस ““ सोक $ ठोक भवन ह >. चिन्ता में चिन्ताये ्मायोजन य चपराश्मोजन कर धुरो त अधुर) खभ पि सभी जायगा जायेगा ¦ तयग त प्येगा । (च्ादि अन्तमें कासा नहीं है दोनों चोर कोसा चाहिए; समर का समर को प्रणा क प्राश हमार सहारा देवो । म रान । को उन पर छिड़क रहे दो । क्यों उन पर डाल रहे हा रहा .जेक खाकर छुषचि छाकर सोर सती... ... कायर सपूत ... झटाये वक दिखाने ८ रह गया जक कर छवि छक कर वीर्‌ सतो, कायर कपूत कटाये ! दिस्वायें ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now