जल के प्रयोग और चिकित्सा | Jal Ke Prayog Aour Chikitsa

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Jal Ke Prayog Aour Chikitsa by Shivnarayan misr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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् जल के प्रयोग और चिकित्सा देश में इनके स्थान पर शुद्ध पानी का ही सेवन श्रधिकता से होना चाहिए. मादक पदार्थ बहुत कम और उचित अवसरों पर तभी इस्तेमाल किये ज़ाने चाहिए जब बैच ऐसा करना जरूरी समभीं. ऐसा न होना चाहिए कि अधिकांश यूरोपवालों की तरह मादक द्व्यों को प्यास बुभाने का एक ज़द्यि बना लिया जाय. प्यास से परेशान होने का कोई मोका ही नहीं आने देना चाहिए... देवी रक्त का शोधक शुद्ध जल कभी किसी को हानिकर हो ही नहीं -सकता. जलपान का परिमाण मचुष्य के शरीर में ७० फीसदी पानी का भाग रहता है. इसमें से अधिकांश तो ज्यों का त्यों शरीर के बाहर निकल जाता. हैं और बहुत सा श्रन्द्र ही शोषण हो जाता हैं. जिस अअचजुपात में इसका व्यय होता हैं उसी परिमाण में इसको ऊपर से ग्रहण करना श्रावश्यक है. . किन्तु बहुत से मनुष्य काफी मिकदार में पानी नहीं पीते. परिणाम में वे दुःख भी उठाते हैं. भोजन श्र पान में पानी नितांत श्रावश्यक पदार्थों की श्रेणी में गिने जाने के योग्य है. .... किसी किसी श्राचार्य का तो मत है कि-- द्विगण च पिवेत्तोय॑ सुख सम्यक श्रजीयंति | भोजन में जितना भंश ठोस ही उससे दुगुना जल पीना चाहिप. किन्‍्ही का मत है.-- कुच्तमागिद्धयं भोज्येस्तृतीये बारि पूरयेत । वायोः संचारणाथाथि चतुर्थमवशेषयेतू ||




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