स्त्री और पुरुष | Stree Aur Purush

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ख्री और पुरुष ११ शिक्षा के निष्कष-भर हैं जो हमारे नेतिक विचारों की बुनियाद में है और जिनका हम शिक्षण देते हैं या कमसे-कम मानते अवश्य हैं--पर बाद में सेरा यह खयाल गलत साबित हुआ | पर यह तो सत्य है कि प्रत्यक्ष रूप से इन विचारों की सच्चाई में कोई शक नहीं करता कि विवाह के पहले या बाद में विषयो- पभोग अनावश्यक है--कंचिम उपायों से सन्तति का निरोध नहीं करना चाहिए। बच्चों को खिलौना नहीं समभना चाहिए श्रौर स्त्री पुरुषों को दूसरी बातों की अपेक्षा दैहिंक संभोग को ऊंचा नहीं सम- काना चाहिए। अथवा एक शब्द में कहूँ तो किसी को इसपर विरोध नहीं है कि विपयोपभोग की अपेक्षा संयम--ब्रह्मचय--कहीं अधिक श्रेष्ठ है। पर लोग पूछते हैं यदि न्रह्मचय विषयोपभोग की अपेक्षा श्रेप् है तो यह स्पष्ट है कि सनुष्य को श्रेष्ठ साग ही का अवलम्बन करना चाहिए। पर यदि वे ऐसा कर तो सचुष्य-जाति नष्ट न हो जायगी १ कितु प्रथ्बीतलसं मचुष्य-जातिके मिट जाने का डर कोई नवीन चात नहीं है.। धार्मि + लोग इसपर बड़ी श्रद्धा रखते हैं और बैज्ञा निकों के लिए सूय के ठण्डे होने के बाद यह एक अनिवाये बात है | पर हम इस विषय मे यहाँ कुछ॒न कहेंगे । इस दलील में एक बड़ी व्यापक और पुरानी गलत-फहमी है। लोग कहते हैं कि यदि मनुष्य पूणण न्रह्मचय-पूवक रहने लग जायें तो प्रथ्वी-तल से सनलुष्य-जाति ही उठ जायगी अत. यह आदर्श ग़लत है । पर इस तरह की दलील पेश करनेवालों के दि्साग में नीति नियम और आदशे का भेद स्पष्ट नहीं है ।




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