श्रेयार्थी जमनालाल जी | Shreyarthi Jamnalal Jee

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Book Image : श्रेयार्थी जमनालाल जी  - Shreyarthi Jamnalal Jee

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हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।

विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन्‌ १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन्‌ १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन्‌ १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अध

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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£ ईद: भी अपनेको उसमें उत्सभें कर देते थे। नागपुर में कांग्रस का अधिवशन १९२० के दिसम्बर में हुआ। स्वागत-समिति के अध्यक्ष जमनालालजी हुए और असहयोग के आन्दोलन में उत्साहपूर्वक आ गए। महात्माजी ने वकीलों को वकालत छोड़ने के लिए कहां। उनमें बहुतेरे ऐसे लोग थे, जो असहयोग में आना तो चाहते थे; पर परिवार के भार के कारण कठिनाई महसूस करते थें। ऐसे लोगों के जीवन-निर्वाह के लिए जमना- लालजी ने एक लाख का दान दिया और एक प्रकार से 'तिलक-स्वराज्य- कोष' का आरम्भ भी इसीसे हुआ, जो पीछे चल कर एक करोड़ से अधिक हुआ। असहयोग-आन्दोलन में पड़ जाने के कारण जमनालालजी को अपने व्यापार मेँ समय लगाना दुष्कर हो गया ओर इसलिए वह सारा कारवार कर्मचारियों के हाथ में सौंप कर सावंजनिक काम में अपना समय लगाने लग गये; पर वह इतने व्यापार-कुशल थे कि जब कभी थोड़ा समय निकाल सकते तो उतने ही में कर्मचारियों से सव बाते समभ कर उनको उचित आदेश ओर परामशं भी दे दिया करते थे। यद्यपि कई दिदाओं में, विशेषकर नैतिक कारण से, उन्होंने व्यापार कम कर दिया था, तो भी काम एक अच्छे पैमाने पर चलता ही रहा और बाजार में उनकी पीढ़ी की बहुत अच्छो साख बनी रही । यद्यपि वह अंग्रेजी बहुत नहीं जानते थे तो भी इतनी तीव्र बुद्धि थी कि अंग्रेजी में भी कांग्रेस में उपस्थित किये जाने वाले प्रस्तावों का जो मसौदा बनता उनमें बारीक-से-बारीक प्रश्न निकालते और गंकाओं का निराकरण कराते । इसलिए सरदार वल्लभभाई मजाक किया करते कि वह वकिंग-कमिटी के वकील हैं। अपनी व्यापार-कुशलता के कारण कांग्रेस के अन्दर उनकी व्यवहारी बुद्धि से सभी लोग लाभ उठाते । १९ २१ से उनकी मत्य के समय तक वह॒ बराबर कांग्रेस-वकिंग-कमिटी के मेम्बर




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