माखनलाल चतुर्वेदी जीवनी | Makhanlal Chaturvedi Jeevani

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Makhanlal Chaturvedi Jeevani by ऋषि जैमिनी - Rishi Jaiminee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका १६ के लिए दिको श्रोर श्राश्रयकी खोजमें प्रवा त्र मध्यप्रदेश श्रपते श्राघातों मौर ताजा घावोको भूला श्रौ उसने वैष्णवधर्मका स्वागत इस तरहसे किया मानो एक कमणएडलमे सदखों मीलन दूरकी भागीरथीका जल श्रपने पैरो चलकर श्राया हो श्रौर मध्यप्रदेशमे स्वयं ही नई भागीरथीके उद्गम-सा बहने लगा हो । यहाँ व्यक्तिगत धर्म श्रौर सामाजिक धर्मं पहलेसे ही पने साधकोकी श्रप्रमत्त ईमानदारीकी बजहसे घर-घरमें घर्म- बिन्दु ( भ्रमसीकर ) चना दूश्रा था] मध्यप्रदेशमे ध्म॑जिज्ञयुश्रोकी हृदयतः प्रियता पानके उपरान्त वैष्णवधमं विन्ध्याचलके डैनोके सन्देशेमिं छ्नौर नमंदाकी शाश्वत वाणीम एकाकार हो गया } यद्यपि उसके उपरन्त ` श्रपनी रक्ता करनेके नाते उत्तर भारतमें वैष्णएवध्मं॑सम्प्रदायोमे विभक्त होता चला गया, पर मध्यप्रदेशका वैष्णवधमं तो उसी तरह अखश्ड रहा; जिस तरह विन्ध्य खण्डपर उगे हुए; पलाशवनका सुद्दास पतभड़के दाइक कणोंमें भी; श्रपने वासस्ती पुष्पोंमें श्रविभाज्य रहनेका' श्रादी है। यही कारण है कि मध्यप्रदेशपर इतिहासके हर युगमें देवी श्रौर राजनीतिक प्रकोप व महामारियाँ श्राइ, लेकिन यहाँका साधारण जन श्रविचलित भावसे झपने मन्दिर, बावड़ी, तालाब श्रौर धर्मंमूर्तियोंको दी अपने जन- जीवनका घरेलू अज्ञ बनाये रहा । उसोमें उसके समग्र जीवन-विश्वास निहित रहे; माताके श्रञ्चलवत्‌, उन्दीमं वहं सुखकी नींद भी सोया | ४ चेष्णवधरमं ओर स्वंजनिक ब्रह्मय्यं मैं वैण्णवधर्मंकी रूढ़िका कायल नहीं हूँ। रूढ़ि उसमें ऐसे ही है, लैसे गन्नेके बीच-बीचमें पोयश्रॉंकी गाँठें । प्रकृतिने श्और संकट-चणोंमें श्रायोजित की गई यात्राश्रोने वेष्णवषंमंके िकासक्रमकी रूपदक्तताको म्रथित ही गदीक्गी कलासे किया है । जब मैं देशके मध्यकाल श्रौर सुगलत- काल श्और श्रंग्रेजीकालको पढ़ता हूँ, तो मेरी इष्टिसे सेनाझींकी पगथ्वनिके




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