माखनलाल चतुर्वेदी जीवनी भाग - 1 | Makhan Lal Chaturvedi Jivani Bhag - 1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Makhan Lal Chaturvedi Jivani Bhag - 1 by ऋषि जैमिनी - Rishi Jaiminee

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ऋषि जैमिनी - Rishi Jaiminee

Add Infomation AboutRishi Jaiminee

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भूमिका १५ मै किसी एक व्यक्तिकी नीरस जीवनी लिपिबद्ध करे नहीं श्रा गया हँ | माखनलाल चतु्वें दी के व्यक्तिके रूपमें सुके तो समूचे मध्यप्रदेश की कलात्मक तपस्याकी नददन्नघागाका ही दिव्य दशन सुलभ हो गया है । वास्तवमें हिन्दी काव्यने माखनलालको नहीं गढ़ा, मध्यप्रदेशकी जो मी युग-पुरातन श्रौ शाश्वत सावंजनिक ब्रह्मचर्यकी घारा है, उसीने माखनलालको पोसा है श्र उसीने उसे इतना बड़ा “साधूक्त' बनाया है ! ५ हिन्दीका स्वराज्य और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रके इतिहासमें और उसके जनजीवनमें हमारे यहाँ सबसे अधिक लोकप्रिय शब्द गमराञ्यः रहा है । लोकजगत्‌की वैष्णवी नैतिकताने इस सरस सुपाच्य शब्दका प्रसव किया था । जब देशने स्वतंत्रताकी रणमसेरी बजाई, तो उसने श्रपने मोहक लक््यके रूपमें इसी रामराज्य शब्दको, देवमन्दिर रूप, पहलेसे ही खड़ा कर लिया था । पर यह रामराज्य भी आखिर क्या है ? व्यक्तिके निजी संयम, परिवारोंके निजी संयम और समाज-समाजके बीच निजी मर्यादाएँ तो हमारे यहाँ श्रबोले-अ्लिखित विधानके हिंसाबसे जीवित चली श्रा रही है} लेकिन देशका जन-मानस विगत डद हजार वर्षमिं इन मर्यादाश्रोकी ˆ ..> > -> जीवनक स्वस्थ सोमं इसलिए नदीं ले सका, क्योकि क्रमशः जीवन राजनीतिक धरातल पर ऊपर भी उठा, पर उसकी कदय-इष्टिके ऐसे कंगूरोंसे भी घिर गया जहाँ जोखिम श्रधघिक थी व्यापक तबाहीकी, श्र अस्तित्वके प्रश्न घरती पर पैर रखनेकी जगह भी हूँढ़े नहीं पा रहे थे । उन क्षणोंमें ऐसे द्रष्टा श्रागे श्रये, जो राजनीतिक लाभके पिपासु नहीं थे, लेकिन वे मनुष्यकी भावी सन्ततियों के सुखकी कामना, प्रबलसे प्रबलतम रखते थे--उन्होंने श्रनेक रूपोंमें, श्रनेक र्थोम॑ सावजनिक ब्रह्मचर्यका विधान रचा, उसकी मज्जल-कामना की त्रौर उसकी व्याख्याश्ोंको स्पष्टसे स्पष्टतर किया । जन्न वेष्णवघमंकी व्यापक




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now