पृथ्वीराज रासो | Prathaviraj Raso

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Prathaviraj Raso  by सुरेन्द्र कुमार - SURENDRA KUMAR

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना पृथ्वीराज रासो राजपूताने वे क्षत्रिय वीरा का व्रति प्रिथग्रय रहा बहा मटाभारन से उत्तर कर रामो ही सव श्रेष्ठ गौरव का पात्र समभा ता था । इसके श्रलिश्वित इस ग्रथ को हिदो साहित्य का श्रादि खत 1 दि ग्र थ माना गया है । इस ये वैज्ञानिक तथा प्रामाणिक सम्पादन निये लगभग गत सौ वर्पों से प्रयत्न होते रह, परन्तु इस का प्रमी को प्रामाणिव तथा मापा वित्तान वी दष्टि से उचित सम्करण गत नहीं हो सका था । ऐसा होने म दा वाघाए थी । प्रथम ता इस प्रनत झ्राने बाली ऐतिहासिव समस्याशों श्यवा विप्रतिपत्तिया का र विद्राना म जहा पाह्‌ चलत रहा, क्योकि रासा का सम्बध इतिहास प्रसिद्ध व्यक्ति भारत पर मुस्निम श्रा्मणकासियो से लाहा रेने बलि हु सम्राट पृथ्वीराज चौहान बे जीवन चरित्र तथा तत्कालीन राजनतिक विवरण से है। इसकी ऐतिहासिक विपमताम्नो श्रयवा विप्रतिपत्तिया कारण ही त्रिसी विद्वान ने इसे जाली ग्रथ माना तो कियो ने ग्रधामाणिव! । सर्वे प्रथम सन १८३६ में रार्वटदेंज नामक एवं रसी विद्वान इस अथ वे बुड भाग का श्रनुवाद कर प्रकानित करना चाहता था, परत उक श्रसामयिक मृत्यु ने पूर्वी भवा तया मादित्य वे विद्वानो का उसका शौगल दमने से जचिन धर दिय।) कनल टाड इस ग्रथ से उतना प्रमाविन था कि उसने श्रपने गुर यति ज्ञानचद्र सेगमो वै पत्रों व श्रय सुन सुन गयत समरेखी मे आनुदाद वियः सथा अमनी भसि प्न काव] 0 (२145021 मे गसो का विदोप उपयोग्र क्या । पही नही लम्बी सर्विस के पर्वात्‌ मारत भूमि को छोन्करर स्वदे चले 1 इम समस्या पर चिदेष प्रिवरिण “णलिदासिक्ता” अध्याय में रयें |




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