कवि नेवाज कृत | Kavi Nevaj Krat Braja Bhasha Padhaanuband Sakuntala Natak

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Kavi Nevaj Krat Braja Bhasha Padhaanuband Sakuntala Natak by राजेन्द्र कुमार शर्मा - Rajendra Kumar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम तरग 1] {७ यह 'फरकसेन' या 'फरवसर' कौन था ? जिसे पराजित करने पर फिटाई खाँ, जम षान्‌ चन गया? विवेचन मे श्राजम लाक प्रसग में यह सप्रमाण स्पष्ट कर दिया गया है वि सीमान्त प्रदेश मे सद्‌ १६७२ ई० मे भ्रफगाना क॑ दुर्दात विद्वाहू श्रौर अीदी नता अकमल खाँ के दमन के फलस्वरूप फिदाई खा का श्रीरगजेब ने प्रसत होकर झाजम खा वो उपाधि दी थी । 'प्रकीदी' (शरफ्गानियो के लिषए प्रयुक्त प्रचलित नाम) शद ही का सक्िप्त काव्यरूपं प्रदी >फिरद>>फरद हो सकता है । विकी शब्द का इतना अधिक परिवत्तित हो जाना सोक मापा जगत में कोई भार्चय नहीं है यहा “गर्ग रण्य” का 'गागरोन शौर 'वदम्बबास' का 'कइमास तक बड़ी सरलता में हो जाता है । स्वर सकोचन की प्रवृत्ति वो तो प्रयत्न लाघव भी प्रोत्साहित करता है “मास्टर साहब का भास्साब भौर लाट साहब' का 'लास्पाव' इसी वे निदर्शन हैं । श्रत फरतसेन मान लेन पर श्रर्थ स्पष्ट हो सकेगा । 8-देखिए विवेचन कवि नेवाज का झाश्यदाता' शीर्पव अर दो । 4-सम्प्ण पुस्तक में यही एवं ऐसा दोहा है जो नेवाज के श्राधरयदाता कां कुछ परिचय देता है किन्तु दुर्भाग्यवश इसी क॑ पाठ वी दुर्गति हो गई है। 'छ' प्रति के साधक ने भी इसकी शुद्धि का सम्पक प्रयास नहीं किया उहने कदाचित मही सोचाकि नदन्‌ मुस्लेपान भौर 'फरुकसेर' भादि शादा की भ्रथ सरम्ब थी सगति बया होंगी ? तहत वा श्रयं होता है, पूत्र-वया भाजमयान पिल खा का पुत्र था? मुस्लेपान का वाई भर्थ भराप्त नही होता 1 फष्कभर कौ बातत उपर हो चुकी । श्रत अजीब धर्म सकट है-प्राप्त पाड क¶ भ्रयं गडवड दै ्रौर विद्रजन। के पारु मे दुस्तदेष करना धृष्टता दै । सुधी पाठक क्षमा कर । फिर मो प्रथं की स्पष्टता के हिते, विचार पूर्वक मैं इसका श्रधोलिखित पाठ समकता हू - 11॥ ॥६§ 51 5 51 115151 नवल फिदेया पान जो, रग मुसल्तेहपान। ॥115॥ 5 1॥ ॥इ 15 ॥ 5151 फरदसेन को दय फते, भयो प्राजमपान॥ 'रग--भौरगजेद ने लिए प्रयुक्त सक्षप्त नाम 1 मुम्तेट--रुमल्तह- ठधियार्‌ वन, सशस्व,भ्रस्ल-शस्त्र सजित | (उ हिन्दी झब्टकोप, हु० ५३५) पान--अप्यक्ष, भमीर, सरदार, बहुत बडा भौर प्रतिष्टित-व्यविठ (उद-हिन्दी शब्दकाप, पु० १५६) शत भर्ष होगा कि फिदाई सा जो दि शौरगजेव की दास्त्र-सचित विद्याल-वाहिंनी का सरदार था, झफीदियों की सना को परास्त कणे के वारण “'माजमपान' कहूलामा।




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