गांधी जी कवियों की श्रद्धांजलियाँ खंड 4 | Gandhi Ji Kaviyo Ki Shradhanjaliya khand 4

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग।धीजी थे हिमालयके सदृद्य तुम सुदृढ़ उच्च महान थे. महा विस्तीर्ण तुम गंभीर सिधु समान पुण्य-जीवन जाह्नवीसे थे शुचित्व-निधान स्वच्छ निर्मल थे. गयगमसे दिव्य ज्योतिवाति सम रहे. स्वाधोनचेता कितु सत्याधीन छोड़कर इस मर्त्य जगको तुम गये सुर-धाम पर तुम्हारी दिव्य आत्मा हैं. अमर अभिराम यह हमें. करती. रहेमी चल-प्रदान प्रकाम हम करेंगे भक्तिसे उसको. सदेव प्रणाम स्तुति करेगी. सन्यता प्राचीन जर्वाचीन रह गये है जो तुम्हारे शेष बिमलादयों हूं मिटा. सकते नहीं उनको हजारो धर्ष टूर होगा बस. उन्होंसे सृष्टिका संघर्ष और होगा शुधि परस्पर प्रेमका उ्कर् कर गये हो तुम अमर निज सभ्यता प्राचीन धौरताके . वीरताके. घुम रहे. अवतार सहूय था तुमको कहीं कोई न अत्याचार बघु सब मानव तुम्हें थे दिश्व था परिवार दाजुको भी प्राप्त था अनुपम तुम्हारा प्यार हुदय-मदिरमें रहोगे. तुम सदा आसीन सौ. भय टचका जरा साफ विफल फितु उर-उरमें तुम्हारा हैं. निरतर वास लोकमें. छाया. तुम्हारा हैं. अनत प्रकाश सिद्ध फरनेको तुम्हारे सब असिद्ध प्रयास काल भी हमसे वुम्हारी स्मृति न सकता छोन हो पयो हैं विदयकी वर विमल ज्योति विलीन --गोपालशरण सिंह




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