श्री जैनमत दिग्दर्शन त्रिशिका भाग - 1 | Shree Jainamat Digdarshan Trishika Bhag - 1

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Shree Jainamat Digdarshan Trishika Bhag - 1 by देवीलालजी महाराज - Devilalji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६ प्प्ल धमवतारा को हमं तीथकर मी कटने दें क्योकि ज्ञान, दशन, चारत्र झोर तप रूप गुण श्रोर साधु साध्वी, ्रावक, झार थाविका रूप गुणी ये गुण शुणी के झमद रूप से श्राप चार तश्च स्थापन करते दं इस से तीर्थंकर कहलाते हैं। पेसे तीथकरो की उपासना दम मोंच्त पाने के झर्थ करते दे कथकर इनका हमारे ऊपर निमित्त भूत परमोपकार हे । इन क साथमे जगन परसिद्ध जगतव्रह्लभ भरतादि द्वादश चक्रवर्त।, श्रीरामचन्द्रादि नव बलदेव, श्रीकृष्णादि नव चाखुदेव, .. यभा पक अवतार रूप दी होते है, इत्यादि । इति श्रीतीथेकरादि घमोचनतार का चतुर्थ चिपय समाप्तम । | # पाचचवा जवि आारक्मकापिषय ओ _ जांच के खाथ कमं श्रनादि मनते दे, किन्तु जीच चतस्य (ज्ञान ) रूप है श्नैर कमै पुद्धलः [ जड़ ] रूप हैं । दोनों के पक- त्रितददोनेसरि जीवका श्नेक्र रूप रूपोन्नर दोता.दे तथा इन कमा के पृथक [ अलय ] दोन सं जीव मोच्त में _ भी पहुँच जाता हे किन्तु स्वतत्रदो के कत्ता, भोक्ता तथा कर्मो का फल भागनेचाला स्वयं जीव ही है न कि इंश्वरादि भुगतान वाले हें प्रश्न-श्रजी- बाद कमे तो जङ्‌ दै.भोर जङ्‌ मे इननी शक्ति नद्दी हे जो ।कि जीव को उठाके नरकादि गति में ले जा कर डाल दे श्रौर जीव भी पसा नदी है जो स्वयं दी दुःख भोग ले, क्योंकि दुख परतंत्र दो कर भोगे जावि हे । इख लिये कमे फल सुगते बाला कोई दूलरा है ्थीत्‌ खल दुख रूपी- कम का.कृ्तातो जीच है परन्तु फल भुगताने बाला ईश्वर है । उत्तर-दें मित्र ! जड़ पदार्थ म तो अनन्त शक्तियां विद्यमान है देखिये, डष्टान्‍्त -मदिया , पक जड़ पदार्थ है परन्तु इसको कोई




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