श्री जैनमत दिग्दर्शन त्रिंशिका | Shree Jainmat Digdarsan Trinshika

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Shree Jainmat Digdarsan Trinshika by देवीलालजी महाराज - Devilalji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६) ৭০৩৭-০০-4৮ पक नमन पने धर्माचतागे को दम तीथेक्रए भी कहते हे क्योकि शान, दशन, चारित्र और तप रूप गुण और सांचु साध्यी, भ्ायक और श्राचिका रूप गुरी ये गस युष के अमेद रूप से आप चाए त्तीथे स्थापन फरते ६ इस से त्तीधकर फदलाते ८े। पेस तीवेकर्त की उपासना हम माक्त पाने क थ्र्थ परते दर क्योकि इनका हमारे ऊपर. निर्मित्त भत परमोपफार दे । इन फ साथ से जगत प्रसिद्ध जगतयज्लम भप्तादि दाद खकपती, भ्रीरामच'द्वादि पय बलदेब, औरूप्णादि नव यासुवे1, य भी एक अपतार रूप दी द्वोते है, इत्यादि | शत प्रीतीर्यंक्ररादि এলীললাহ का चतुर्थ धिपय समाप्तम । पाचवो जाय आर कमे का লিখ. जीप के साथ फर्म श्रनादि मानते द, किन्तु जीव चैतन्य ( शान) रुप दै श्रार कफम पुद्वल [जङ्‌ ] रूप दि । दोन के पक~ धिन দ্বীন উ আরক্ষা अनेक रूप रूपान्तर दोता है तथा इस कमो क एथ श्रलग] होन से जो मन्त मे भौपर्ुच जाता द কিন্ত स्वत द्वो के फत्ता, भोप्ता तथा फम। पा फल भोगनेयाला स्पय, जीय ही दे भ कि इंश्वरादि भुगताने वाले प्रश्न-अजी चाह «फर्म तो जड़ द और ज्ञड में इतनी शक्ति महीं दे ज्ञो कि जीव को उठाक नरकादि गति में ले जा कर डाल दे भर जीव भी एसा नहा दै जो स्वय ही दु प भोग ल, फ्योंकि डुख থলে হী कर भागे जाते है । इस लिये कमे फल भुगताने घाला फोई दूसरा हैं अथोत्‌ सुप हु ख रूपी कम का कर्चा तो जीव द्व पर तु फल झुगताने घाला इश्बर हे 1 उत्तर-दें मित्र ) जड़ पदाथे में तो अन”त शक़िया विद्यमान ই देखिय, इशान्व-मद्य एक' जद पदाथ दे परतु इसको कोई




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