श्रीरामचरितमानस भाग - 2 | Shree Ram Charit Manas Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
492
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अयोध्याकाण्डम् ९
ह्फलायंक है । जैसा ( 'सुजसु रहि जग छाई दो० १०३ }-गगानीकी सपौख्पेम
थाभोने राजोपर्िष्ट षनवासविषिको पुख्पाथये रूपमे समक्षाया टै । सव यष्ट कहना
होगा कि विधिनिमिसक भक्षा म होनेसे यमुनासे श्रीरामा सम्मापणम होमा
उधित है । एवं च गंगाजोका पघन निरथंक या निष्प्रयोजन मरही है ! निष्कपं यहु कि
वनवासेन कि भावयेत् इस यावांक्षाका उपधामन गंगानीने किया है ।
विधिपालनमें सुनिर्योका योगदान
उत्पत्तिविषि और अधिभारघिधिको समझनेके अमन्तर स्वभायत कृषं
वनघासं मावयेत ऐसी 'इतिक्तव्यताकाक्षा' उदित होठों है। दस नियमको ध्यानमें
रखते हुए कहना होगा कि प्रभुके हृदयमें गंगापार होनेके अनत्सर उक्त हृतिकर्सष्या
कॉका--'वनवारस क्थे मावयेत'का उदय मया होगा। वह आा्काक्षा प्रकृतमें दो
भागमें विमक्त है । एक 'केन मार्गेण गस्तब्य', दो 'कस्मिदू वने वसेयम' । इन घाका-
क्षाेकि उपणमनमे रानाने सुमत्त्रये माध्यमसे मार्गे-दशनको आाकांक्षाको पहले
हो समाहिष्ठ करानेकी व्यवस्था को थो पर गंगातारपर पहुँचकर सुमस्त्र स्नेहकी
परतस्थ्रता्मे मोरने लगे, अत मस्तिष्क स्वस्थ म होनेसे थे मार्गदर्दगमें अमो प्रमाण
न रहे । गुहका मार्ग-दर्धन भी प्रिकालायाधित म रा मेसा फ गुहु-खदम्ण संवादसे
स्पष्ट है। न सो घहद मुनिको उपस्पितिमें मा्गं-दर्शन करानेमें शास्त्त' अधिकारी भी
है | इसलिए प्रमुबी मार्गाकांक्षारमक इतिक्ंब्याकांक्षा ष्यों-की तयों यनी रही । सम
श्लीरामने “गंगायमुनयोरमध्ये थे बसन्ति” इस बैदिकवसनकी मा यप्तापर मुनियाका
स्मरण कर ती्प॑पापा प्रारम्म की । फसत' भरद्वानपुनिसे मेंट हुई लो मार्गनिर्षेदा
करेंगे । इस प्रकार मार्गाकांकषा समाप्त होंगी । कस्मिन् यने वसेयम् धस साकक्षाका
उपद्यमन मुनि वात्मोकि करेगे । इस प्रकार ममि द्रपके आशममें प्रमुका पहुँचना
प्रयोजन है |
शमी ज्ातिष्य यह् है कि यमुनाजा होते हुए प्रमुका भाना व्यय नहीं है क्योंकि
वनवासविधिके पानम धापस्वेपविसेपो %ी सिद्धि छापसमिखनसे मद होनेवाली
है। समाजसद्ित मरतको भो प्रमुदर्शनानुरूप धर्मे श्वौ रामप्रोतिका उत्प पमुनाके
वरदानसे प्राप्त होगा ।
परगति भरद्राज मुनि मागं-द्पनकी आकांकाका प्रदामन सुगम मारके
सुझावसे कर रहे हूँ ।
'भौ०-मुनि मम घिहुसि राम सम कहूहीं । सुगम सकल मग सुम्ह कहूँ अपर ॥२॥
भावार्थं मरदराज मुनिसे मागं पुछनेपर उन्होंने मन-द्दो मन हँसते हुए कहा
कि सभी मार्ग प्रमुके लिए सुर्म है | (+
भाचा्योँका णौरव
झ्ा० ध्या० मागं-यरदंनम योग्यत्तम भरद्वाज मुनिस मागं पृष्ठमा भरद्वाज
मुनिके स्वास्थ आचार्यत्वके गौरयकों प्रकाशित करना ट शयोक सुभिके निकट
म्
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