प्रगतिवाद | Pargtivaad

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Pargtivaad by शिवदानसिंह चौहान shivdaansingh chauhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्या साहित्य प्रॉपगैरडा है? विरोधी श्रौर श्रसाहित्यिक समकता कि मुकके श्नायासद्दी प्रगतिवादसे घृणा दोजाती ॥ म समता किं प्रगतिवाद कला रौर सादित्यकी कलात्मकता और सादित्यिकता तथा अन्य सभी उन रुरो जो इन्दं सजीव, मयुर श्मौर सुन्दर बनाते ई, न्ट कर उनके स्यानपर नीरस “वादों” की व्याख्या हड़ताल करनेके ऐलान श्र मज़दूर-किंसान सभाएँ: या श्रन्य पार्टियाँ संग- ठित करनेके प्रोग्रेम और प्रदर्शनोंमें गानें योग्य सीत श्र नारे भरना चाइता है । किसी भी व्यक्तिकों साधारणुतया यदद मान्य नददीं दोसंकता, मुक्े भी कैसे मान्य दोता १ ग्रौर मँ श्री इलाचन्द्र जोशीके उपकारको मानताहु्रा करि उन्दंनि प्रगतिवादके चक्करमे पड़नेसे पदलेद्ी मेरी ग्रंखें खालर्दी, प्रगति- वादिर्योक्रो श््रसाहिलिक्र पेशेवर प्रोपैगेरिडस्ट, गद्ुलिका-प्वाद-पन्थीण, उच्छृ द्धलतावादी» शधूतः § ्रादि दुर्वचनसि सुरद -शाम उनकी. स्ति करता-रहता । सौभाग्य या दुर्भाग्यसे मैं, या हिन्दीके अधिकांश .तरुण लेखक, श्राज इस प्रकारकी रचनाश्रोंके,मिचं-मसालेदार साहित्यिक खाद्यसे मानसिक-भोजन प्राप्तकर साहित्य-क्षेत्रमें, नहीं श्राये. ह, इस कारण प्रगति- वादके प्रति जोशीजीकी घूणाके कीटारु हमारे दिमारोंमें घुसकर बीमारी नहीं फेंलापाते | लेकिन सुझे-द्याश्चर्य इस वातका है कि लोग कितनी सरलता- पूर्वक न्यस्त - स्वार्थ मनोवृत्ति द्वारा उतनन भ्रमॉका प्रचार 1 करने लगते हूं। क्योंकि इस दृष्रकोणका, उद्देश्य प्रगतिवाद द्वारा उठायी समस्याश्रों उसके वक्तव्यो ग्रौर उसके दृिकाणको समकर श्रपनी स्वनात्मक ्रालो- चना देना नदीं है, बल्कि उसपरं कल्पित श्रारोप लगाकर एसे भर्मोकी सि करन दै' जो ` प्रगतिवादको वदनाम करदे उसके स्वाभाविक पिकासको रोकदे ग्रौं वतमान पृं जीवादी समाजक्री सादित्थिक श्रराजकता ग्रौर मान- सिक विश्धलताको भी ज्योका-त्यों क्रायम रक्‍खें । “ प्रचारात्मकंता› के नामपर प्रगतिवादके विरुद्ध स्वर ऊँचा करनेवाले ये महांशय श्मपने कथनो के श्रर्थाराप स्वयं, नदीं संमकते या जानकर भी वे श्रनजान बने रई, श्र॑तः _«. * § खाहित्य-व्जना--इलाचन्दर जोशी ,* „~ ` ~ , 1 1 > र्ण खेद दै किंश्रचारः प्रपिगेर्डाका पर्याय है ग्रौर जोशीजी तथा उनके सहधर्मियो द्वारा ग्रतिपादितः बातोको “प्रचार कहकर. मैं उनके प्रति सम्मान प्रकट नदीं करना चाहता तोभी किसी श्न्य॑ उपयुक्त शब्दके ्रभावमें इस र्हित-वर्जितः शब्दका ग्राश्रय लेना पड़रहा दै [-~ लेखक >११




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