श्री उत्तराध्ययन सूत्र का हिन्दी अनुवाद | Shri Uttaradhyayan Sutra Ka Hindi Anuwad

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Shri Uttaradhyayan Sutra Ka Hindi Anuwad by सौभाग्यचन्द्र जी महाराज - Saubhagyachandrji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क ै बु झददकध, की भावइ्यकता दी क्या रही ? इस तरह की शाइवतवादियों ('नियति-- बादियों ) की सान्यता होती है, किन्तु जब आयु दिधिठ होती है तब उसकी भी वह्‌ मान्यत्ता बदर जाती है और उस समय उसको खूब पश्चाचाप होता है । ' [ अनुवाद शल्ती ] भनुवाद दो प्रकार के होते हैः-- (१) शाब्दार्थ भधान जनुवाद्‌, भौर ( २) वाक्यार्थ प्रघान अनुवाद । शब्दां प्रधान - अनुवाद में शब्द पर जितना लक्ष्य दिया जाता है उतना लक्ष्य सर्थ॑- संकछना पर नद्दीं दिया जाता । इससे शब्दाथ तो स्पष्ट रीति से समक्न , म जा जाते हैं किन्तु भावाथं समझने में बढ़ी देर लगती है ।. भौर कई बार तो बढ़ी कठिनता भी मालूम दोती है। किन्तु वाक्याथ प्रधान अनुवाद में चाद ॐ टकर अर्थं गौण कर दिये जाते है परन्तु वाक्य , रना पचं शली दतनी सुन्द्र तथा रोचक होती है कि वाचक के हृदय पट पर उसको पढ़ते पढ़ते उसके गंभीर रहस्य क्रमशः अंकित होते 'चले जाते हैं और अन्थ एवं अन्थकार के उद्देरय इस शेछी से भली प्रकार संपन्न होते हैं । इस अथ के भनुवाद्‌ मे यद्यपि सुख्यतया इसी शली काभलुसरण किया गया है फिर मी मुरगत शब्दों के अर्थों को कहीं नहीं छोड़ा दै और साथ दी साथ इसका भी यथाश्ञक्य ध्यान रखा है कि भाषा कहीं टूटने न पाये शर सबकी समझ में सरखता के साथ आसके - ऐसी सुबोघ पुव॑सुगम्य हो । [ रिप्पणी ] जैन तथा जैनेतर इनमें से प्रत्येक वर्ग को समझने में सरलता दो इस उद्ेदय से उचित आवदयक प्रप्ंगों पर टिप्पणियाँ भी दी * गई हैं । थे टिप्पणिया यद्यपि छोटी हँ छन्तु अपने शोक के भर्थ को - विद्लेप स्पष्ट करती हैं । इसके साथ दो साथ प्रत्येक अध्ययन का रहस्य समझाने के छिये प्रायः सभी अध्ययनों के भादि तथा अन्त में छोटी २- टिप्पणियाँ दी गई हैं ।_ पद्य शेठी कितनी ही सुन्दर एव विस्तृत कर्पों - न दो किन्तु उसमें कुछ न कुछ विपय अकथ्य--अवर्णित--अध्याहार -




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