काव्यकल्पद्रुम भाग - 1 | Kavya Kalp Drum Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
430
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका १५६
चलने को कहा । इसका यह् अथं नदीं कि वह राजा सोन्दयोदि-
गुण-सस्पन्न न था, ओर यह वात भी नहीं थी कि इन्दुमतिः वर
की परीक्षा करने में झनभिज्ञ थी । फिर इन्दुमति ने श्रङ्गराज
को वरण क्यो नही किया ‰ महाकवि कहते दै--खङ्गराज को
इन्दुमति ने चरण नहीं किया; इसलिये वह योग्य नहीं कहा
जा सकता श्ौर न इन्दुर्मात ही वर-परीक्षा में झयोग्य कही
जा सकती है । वास्तव सै वात यह् है कि “भिन्न रुचिर्हिलोक',
किसी वस्तु के त्याग और परहण मै भिन्न भिन्न रुचि ही एकमात्र
कारण है। किन्तु यह तो बात ही दूसरी है । यहाँ तो प्रश्न काव्य के
ब्मानत्दालुभव का है । अतएव केवल नेसर्मिक-प्रकृति वणेनात्मक
काव्य को व्यङ्ग्य एवं अलङ्कार युक्त काव्य से उचछष्ट कहना.
काव्य के रहस्य से अनसिज्ञता मात्र ही है । अतएव साहित्य
जैसे रसावह और जटिल विषय को भली भाँति समभने और
समकाने के लिये साहित्यशास्त्र के अध्ययन की बहुत छाव-
श्यकता है। खेद है कि हिन्दी के श्रंथकारों ने इस पर
विशेष ध्यान नहीं दिया । हिन्दी के प्राचीन रीति प्रन्थों सें प्रथम '
तो पद्य में दिये गये लक्षण अस्पष्ट हैं, फिर उनका स्पष्टीकरण
वार्तिक में न किया जाने के कारण वे बहुत ही संदिग्ध रह गये
हे । उनके द्वारा विषय का सममना कठिन दी नदी, कदी कही
पर तो दुर्वोध भी हो गया है । |
इस ग्रंथ में
इस विषय के संस्कृत ग्रन्थों के विवेचन के अनुसार लक्षण सूत्र--
रूप रय में दिये गये ह । लक्षणों को समभाने एवं उदाह-
रणों में लक्षणों का समन्वय करने के लिये चार्तिक-चृत्ति सें
स्पष्टीकरण कर दिया गया है। अधिकाधिक उदाहरण देकर
विषय को यधासाध्य स्पष्ट करने की वेष्टा की गह है ।
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