जैन जगत | Jain Jagat

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jain Jagat by गुरु नानक - Guru Nanak

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गुरु नानक - Guru Nanak

Add Infomation AboutGuru Nanak

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
युद्ध का सुल मांसाहार मे है। सस्कृति के पतन का मूल कारण यह है कि. मनुष्य जीवन के प्रति आदर गवा बैठा है । मासाहार करना, उसे उत्तेजन देना और साथ ही प्रेम, करुणा एव मंत्री की बात करना परस्पर विरोधी है । निरासिष आहार --चिमनलाल चकरुभाई शाहं ४ [प्वुद्धचितक, सुध्रसिद्ध समाजसेवी, कानून- ~ वेत्ता, प्रवुद्धजीवन के सम्पादक एव “भारत जैन महामण्डल' के कार्याध्यक्ष ।] ® श्री राकाजी ने इस विपय पर लिखने के लिए मुझे आग्रहपवेंक कहा है, इसलिए लिखता हू । मैं क्या लिखू * मासाहार की कल्पना भी मेरे लिये सम्भव नही । मासाहारके विचार से ही मेरा रोम-रोम काप उठता है । मेरी मान्यता है कि किन्ही परिस्थितियो मे आहार नही मिले तो मैं मर जाना पसन्द करूँ, किन्तु मासाहार का, किसी दिन भी विचार न करूँ । ऐसा कहे कि मैं ऐसे सस्कारो में पला हू कि मेरी ये मान्यताएं मेरे अणु-अणु मे व्याप्त हो गई हैं। किन्तु ये मान्यत्ताए कोई पूर्वाग्रह नहीं । वर्पों के अनुभव और चिन्तन से दृढ हुई है। मैं जानता हूं कि दुनिया के अधिकाश भाग के व्यक्ति मासाहारी हैं, भारत मे काफी परिमाण मे मासाहार है, कदाचित बढ़ता जा रहा है । मैं जानता हू कि मासाहारी होते हुए भी ऐसे अनेक व्यक्ति सज्जन अन्य प्रकार से दयालु, परोपकारी होते हैं । उनमे से कई वास्तव में महापुरुप थे और हूँ । फिर भी मैं किसी भी हष्टि से मासाहार का वचाव देख नट्टी सकता । मासाहारी को मैं पापी नहीं कहुगा, किन्तु मासाहार मैं सहन नही जून १६७३ १७




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now