प्राण - संगली सटिप्पण भाग - 1 | Pran Sangali Satippan Bhag - 1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Pran Sangali Satippan Bhag - 1   by गुरु नानक - Guru Nanak

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गुरु नानक - Guru Nanak

Add Infomation AboutGuru Nanak

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जीवन चरित्र हद चकित हा गये और गरु साहेव के चरनों पर गिर कर बोले कि आप सच्चे वली-अल्लाह हैं अन्न बतलाइये कि हमारे लिये क्या कर्तव्य है कि जिस से दीन दुनिया दीनोँ की मलाई हो । गुरू जी ने जवाब दिया कि यदि तुम दीन दुनियाँ दोनों का सुधार चाहते है। ते हमारे कहने मुताबिक पाँच नमाज सदा पढ़ा करे काजी ने पछा कि वह कौन सी'नमाज़ हैं । गरू जी ने “पज नमाजों वक्त पज आदि'” का शब्द उच्चारण किया और देर तक परमार्थी और ससारी सच्ची लाभदायक चरचा करते रहे ; इस प्रकार उनकी अभिलापा के पूर्ण करके फिर पहिले की तरह स्मसान भूमि में जा बैठे । वहाँ कई २ दिन तक बिना अन्त जल के ध्यान भजन से निरंतर जुटे रहते थे और जो जिज्ञासू उनकी सेवा में आते उन के सत्त मार्ग का उपदेश करते थे, परंत जब बहा भी बहुत भीड़ भाड़ होने लगी तब एक्रान्त के रसिया गरू साहेब ने उस जगह (सुलतानपुर) के भी छोडने की ठानी | लेकिन इसी अवसर मे तलबडी से पिता का भेजा हुआ घर का मीरासी मरदाना गुरू जी का कुशल समाचार लेने को पहुँचा और उन के साथ खघाहर जाने की अभिलाषा अगठ को जिस के गरू जी ने मंजर किया और जब तक मरदाना एक बार अपने घर होकर लोठ न आवचे त्तव तंक बहा पर ही ठहरे रहना स्वीकार किया । अब तो गुरू जी का अतीत भेप घारन करने का समाचार सुन कर उन के पिता और दूसरे सम्बन्धी और ससुराल वाले सब घिर आये और जहाँ तक उन का बश चला उन के घर लेजाने का जतन किया पर गरु जी क्रिसी तरह न माने और बाला तथा मसरदाना को अपने साथ लेकर सम्बसत श्पशद में * (१) पूरा शब्द श्री गुरू श्रय साहेय में मोजूद है । (२) पेसे गाढ़ आयेश की दशा को भूत- भ्रश्त समक कर पक भाड़ने फूकने वाले मौलाना को बुलाया गय/ था जिसके जन की बरी जला कर नासिका में देते समय गुरू साहेब ने इस श्लोक द्वारा उसे उपदेश किया “स्ैत्ती जिनझ्री उजड़ी खल्नवाड़े नाहीं थाऊँ। भिग तिनों दा जीविगा जे लिस २ बेचन नाऊँ” ॥




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now