ग्रन्थावली | Granthawali

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Granthawali by जयशंकर प्रसाद - jayshankar prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गया । शील के घूँघट की पोट से झाँकती सौन्दयं की विच्छिति अन्व- कार के निचोल मे आवृत हो गई । यह निचोल पुरुष के अहकार भौर भार्सक्त के तानें बाने से बुना और स्त्री की विवश्यता से रगा था । इन परिस्थितियों मे राजा राममोहन राय स्वामी दयानन्द जैसे सामाजिक- धार्मिक सशोधनो के प्रतीक बने और भाषा को धरा पर भारतेन्दु भावी घारा के भगीरथ बने । बीसवीं झाती लगते-लगते जनमानस में एक नई चेतना जागी । गे मे युगो से पड़ा जुवा अब उसे असह्य हो गया. उसे निकालने के प्रयास भनेक स्तरों पर चालू हो गये । प्राय सभी यूरोपीय देशो की भौद्योगिक शक्ति बलवती हो रही थी । उन उद्योगो के यन्त्रों से जुझने पिसने मानव समुदाय का वही अदा जाता था जिसके पास रोटी के भन्य साधन नहीं थे । उच्चवर्ग ने जिसका सब कुछ आहरण कर लिया था . अर्थात्‌ जो सहारा था. इनके सजातीय भल्प और अलाभकर जोत वाले कुषक बने वे जिन्हे राजस्व जुटाना भी कठिन था । उद्योगो ने उस वर्ग को स्वाथं-समता की सामान्य-भूमि पर परस्पर विचार और संगठन का भवसर दिया । भर्थाक-मूल्य-समवायी पारिश्रमिक को न्यूनतम भाधार पर बना सामाजिक न्याय भौर सुविधा के लिये संघषं करने वाली इकाइयाँ परस्पर मिलती गई . प्रतिक्रिया में विरोधी तत्वों का मोरचा बँघा किन्तु यन्त्र-युग से सर्वेह्ारा ने शक्ति ग्रहण किया । विदेशों ने अपने भौद्यागिकीकरण के आय-स्रोत को दास्त्रीकरण की दिशा में लगाना जारी किया . कुछ ने रक्षात्मक दृष्टि से और कुछ ने भाक्रमण की दिशा मे बढने के लिये । इस अहमहमिका मे जमंन संन्यवाद भ्रपनी एकराट्‌ कल्पना लें अन्ततोगत्वा अन्य राष्ट्रो पर चढ दौड़ा । विष्व के इधर के इतिहास मे पहुला महायुद्ध छिड़ा जिसमें ऑग्ल-अपराजेयता की नीव बुरी त्तरहू हिल उठी केले और डोवर के मध्य जमंप-हाविद्जर भर्नि सेतु बाँधने लगे भौर एमडेन मद्रास पर गोले दाग लहरों के राजा को चुनौती दे गया तब भारत के एक प्रबुद्ध वर्ग ने देखा कि अग्रेज हटाये जा सकते है वे अवाछनीय है दूसरे ने निश्चय किया कि इन्हे हटाना ही है . कभी तो ऐसी कल्पना भी सम्भव न थो ? साशय भौर साभिप्राय यहाँ पुंसत्वह्दीन सामन्तवाद का त्तामझाम अग्रेजो ने खडा कर रखा था जो उनके उपनिवेशीय पुजीवादी उद्देद्यो के निरविघ्नतासिद्धयथं कल्पित और संकल्पित था । राजा से जिमीदार प्रावकथन 0 १७ ऐ




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