पाप का फल | Paap Ka Fal
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
45.79 MB
कुल पष्ठ :
113
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पंडित पारसनाथ त्रिपाठी - Pandit Parsnath tripathi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गा०--बहुत अच्छा
राम०--नाम, गांव वरगेरः सब वही रहेगा, केवल मालयुज़ारी
_ का झँक बदल देना देगा ।
गा ०--हां, सब समभक गया, कल ही से उस में हाथ लगाऊ गा |
राम०--झंहा, झाइये, किघर से कंपा हुई है ?
_ गांव के पुराहित देवशरण शर्स्मां आरा पहुंचे है, रामसुन्दर ने
_ दूर ही से उन्हें देख, उक्क प्रकार से झमभ्यर्थना की और पुरोहित
के पास आने पर उन की पंद-घूलि शिरश् पर रख, बैठने के लिये
उन्हें झासन दिया । माला फिर खड़खड़ करती हुई कुछ शोघता से
चलने लगी ।
-” बेवशरण ने कहा--“ मैं लाला के यहां गया था, साचा कि
शव इघर ही से ज़रा हाता चल ।”” ं
राम०--झाना ही चाहिये। बिना शाप जैसे ब्राह्मणों के पांच
की धूलि गिरे, हम लोगों की कुटी पवित्र होने वांली नहीं ।
शस्मी--दझाज कल कीमें। की बड़ी भीड़ रहती है। लाला श्रार
पर
आप के यहां दिन में एक बार झाना ज़रूरी काम है ।
रास०--कहिये, लाला साहब आज कल केसे है ?
_.. शस्मो-वे ते झब जन्म रोगी से हो गये हैं।. खा नुफ्रहैर न
. उन्हें पचता ही नहीं ।
राम०--उन का लड़का मकान पर है या नहीं ? ......... “1
शर्स्सा-रहाँ, कल श्ाया है। चह भी तो एकदम बिगड़ गया |
हिन्दू-घर्म में श्ब उस की श्वास्था नहीं । कहीं की एक विधवा से
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