सरदार पूर्णासिंह प्रध्यापक के निबन्ध | Sardaar Purnasingh Pradhyapak Ke Nibandh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sardaar Purnasingh Pradhyapak Ke Nibandh  by प्रभात - Prabhat

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about प्रभात - Prabhat

Add Infomation AboutPrabhat

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
५ पूरसिंह ५ निबन्धकार एवं कवि पूरसहं इसका चित्रण इनके मित्र तथा स्वामी रामतीर्थ के शिष्य स्वामी नारायणानन्द्‌ ने “दि स्टोरी ऑव स्वामी रामः की भूमिका में बड़े सुन्दर टंग से किया है--“जब १४३० में उनकी सेंट मुक्षसे लखनऊ में हुई तो वे नौकरी की तलाश में घूम रहे थे । वास्तव में वे इस गाहस्थ्य जीवन से उब गये थे श्रौर फिर उसमें जाने की इच्छा नहीं थी । सच बात तो यह है कि वे सांसारिक झर गाहस्थ्य जीवन के बन्घन से बिल्कुल थक गये थे |”? वैसे तो कई वर्ष से पूर्णसिंह गठिया से पीड़ित थे शऔर वह रोग दिनों दिन बढ़ता जा रहा था किन्ठु संबत्‌ १६८७ मं संयोग-वश एक सित्र के साहचय से इन्हें राजयदमा का रोग हो गया । उसका कारण था, पूरणसिंह जी किसी से कोई अलगाव नहीं रखते थे श्रौर सबको माई साहब कहकर गले लगाकर मिलते थे । ऐसे ही राजयद्मा के रोगी एक मित्र के सहवास से इन्हें भी वह रोग हो गया । जिन दिनों ये नोकरी खोज रहे थ, इनकी हालत उस रोग से दिनों दिन गिरती जा रही थी, श्राथिकनसंकय में रोग का उपचार भी ठीक टगसे नहींदहो सकता था। इनकी माता तो संवत्‌ 4 सरदार एशंसिंह , ख़त्यु से छुद्द मास पूव पन्द्रह




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now