गरजती गंगा | Garajati Ganga

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Garajati Ganga by डॉ सत्यनारायण - Dr. Satyanarayan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ सत्यनारायण - Dr. Satyanarayan

Add Infomation AboutDr. Satyanarayan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
माभ पतवार से उदका भोला मामो हृच्छा गुड़णुड़ातें गुड़गुडाते प्चानक रुक गया । इस्पात-सौ सुद्दद्‌ दृड्डियाँ और सुतली जैसी मोटी नसे उसके शरीर की गठन की विशेषतायें हैं । बंगाली भोपड़ो के पुराने छप्पर की शक्क के उसके केश हैं । मूछें करारी हैं । खो से थोड़ा धुँघला दौखता है। इस समय पश्चिम की ओर रखें गड़ा गड़ा कर; ज्ञात नहीं; कया देखने की चेष्टा कर रहा है । 'सोनिर्यो ! उसने पुकारा-- देख ! देख ! (क्या है बाबा £ कहती हई नाव के भीतर से बारह-चौदह साल की एकं लड़की निकली । उसकी गति यौवन कौ ओरर प्रतीत होती है । रङ्ग गङ्खाजी जेसा मय्याला होने पर भी चेहरे कौ बनावट ब्रहुत सुन्दर है । उसकी बड़ी-बड़ी श्रयं ऊँची उड़ान लेती दिखाई देती हैं ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now