आत्म-रचना अथवा आश्रमी शिक्षा भाग-1 | Aatm-Rachana Athva Ashrami Shiksha Part-1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भ्रवचन १
पहुलें दिनकी घबराहट
माप सव मुरसादपूेक आज भिस माध्रममें रहने आये ह । हेम पुराने आधरमवासी
साप नये आधमवासियोका प्रेमपूर्वक स्वागत करते है। शाधमवाससे हमें नित्य नया
आनन्द, नित्य नी प्रेरणा मिलती रही है। आधरममें आकर हममें नया ही जोवन
सा गया है। जाप नये लानेवालोंको भी बसा हो अनुभद होगा जिसमें शंका नहीं ।
नपे-नपे आानेवालोकि मनमें आज पहले दिन बसी अुपल-पुषल मच रही होगी,
जिसकी हम वल्पना कर सकते हूँ। हम खुद जिस दिन नये भये थे, भूस दिन हम भी
भिम अनुभवमे से गुजरे थे। आपने आधमके बारेमें तरह तरहकी बातें सुनी होगी
और अपने मनमें आश्रमकी कुछ न कुछ भूति ना लो होगी। आपके मनमें अुसके
कि खूब प्रेम है, यह तो स्पष्ट दिखगाओ देता है। क्योकि प्रेम न होता तो आप सुशी
खुशी यहां दौड़े न आते। आपमें से बी माता-पिनाक्ते नाराज क्के आये होंगे,
कोओी अप्रेजी शिक्षाका मोह छोड़कर आये होगे, कोभी नौकरी-धन्येके निमतरणकों
टुकराकर् नपे होमे भौर कोओ तो विवाहका मुहर्ते टालकर भी यहा आयें होगे।
भाभ्रमके लिये आपके मनमें प्रेम ने हो, तो अुसके प्रति औसा आकर्षण बसे हो
सकता है?
भरन्तु माय हौ आज पटे दिन आपके मनम भीतर हौ भीतर भेक प्रवारकी
धवरादूट भी हौ । आश्रमका अर्थं है जत्यन्त पवित्र स्थान! हमारे देधमे छोटे वच्चोने
भी सृप्रिमुनियोङे आधमोकौ कटानिया गुनो होती ह+ श्रीड़ृष्ण और सुदामा सादीपनि
मुनिषे आधरममें रहर निधाने ये) वला अनहं गाथे चरने ओर टकड़िपा यौननेकै
लिभे बनमें जाना पड़ता था। रामचद्र और न्दमपय विस्दामिव्र अूपिवे आधरममें बहे ये
वि्ामिन्र भु नै जाये नव पट दार्थ गाजदा जी दुष्दा था! मेरे भुकुनाद
बुमार वनम कनि र्दे सकेगी? आध्रम-जौवनवे शष्ट कैम महन केः सगे? ' जिस
प्रकार रधुनर जम जानी गाजाका तेभी कषणमर मोद हो गया था। आपने दिलौप
'साजाकी बचा भी सुनी होगी। थे वसिप्ठ मुनिके आधममें रहने गये थे। मुनिने
भुन्टे वड आदरे गाधममे स्यान दिया । परन्तु वे भारतदर्पके बे महाराजा थे,
जिस कारणस अन्हें आधमक नियमोसि गुतत रखा । आधमको भमिमे भेद नहीं
होता। राजा और निर्षन ब्राह्मण दोनोके लिये आाधममें तो अंक ही नियम, सेवसा
हो जीवन आशम् बामपेनुकों पुत्रों नन्दिनी नामती गाय थी। असे चराने जाने
षाम दिलीप सजाके टिस्सेमें आया। राजाने
बृह सौपा गण।
अपना सौभाग्य समझा कि यट् कामं
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