चुनाव पध्दतियाँ और जन-सत्ता | Chunav Padhatiya Aur Jan Satta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{६ ] पेदा हुई निराशा से प्रभाधित दोते हैं, अथवा उनका चुना हुआ प्रतिनिधि उनके दितों के विपरीत कु क्ता या करता दै, तवर ये न्द यह्‌ समम्तने फी पेष्टा करते है रि “जनसत्ता या मजा सत्ता व्यावहारिक वस्तु हँ । इनसे ग्ररीत फोई लाभ नदीं उठा सक्ते) शासन की क्ल उनके लिये रची दी नहीं गई है । इसमें तो एक के चजाय धनेक मालिक पन जपति है क्सि फिस को खुश करके काम बना सकते हो ?” श्यादि झादि इस प्रकार उनको प्रयत्न यदे होता ह र्वे जनता के मन मे जनत्तन्य्रात्मक शासनः पद्धति शरीर प्रतिनिथि सस्याश्मा के भरति णा श्रौर विश्वास पैदा फर द । स्वमायत सफलता से निराश शरीर विषियो की श्ट चालो से चिदे दष हृदया परं देसे प्रचार का श्रसरददोने लगता टै। साधारण मनुष्यों की तो थात दूर, इमने 'अनेर फार्यकर्ताओं पर ऐसी स्थितियों श्रीर्धातो का प्रमाय दोतिदेखादै। ीर यदद तो स्पप्र दी दे कि ऐसी घी बो निर्वाध बढ़ने देना से फेयपल देश के साथ प्रस्युत जनत्तन्य फे सिद्धान्त के प्रति भी पमिद्रोद करना है ! यदि इस घास्तय से जनतमवादी हैं 'औीर 'पने देश को उसके लिये तयार करना शाइते हैं, तो ऐसी यातों का सत्वाल श्रतिकार वरना दमारा कर्तव्य हैं । भोली झीर भावुक जनता नतो जनततर चला सकती है, म जनतमात्मक ब्यवस्थाओं से लाभ उठा सकती दूं | यष हमेशा किसी म किसी व्यक्ति था चर्ग से ठगी जाती रहेगी । श्रत जनते फा मार्ग परिप्कूत फरने का इसके सिवाय पोई “राज माम, नदी है चि साधारणं जनवा छ राजनीति के ब्याव हारक नियमा यी शि्ता दी जाय । और यदद तय सर सर्दी दो सकता, जय तक कि चुनाव पद्धतियों के उेर्य, उनके सफल




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