कनक रेखा फूलों का गुच्छा भाग-2 | Kanak Rekha Fuloka Guchchha Part Ii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चार्ली बाबा । ॐ
इस बार तो अदालतका सन्नाटा कुछ टूट सा गया । उपस्थित
जन एक दूसरेका मुँह देखने लगे । जज साहबके मुखपर वही
गम्भीरता थी । सच्ची बात निकालनेका विजयगव जरूर उनके
मुँहपर चमक रहा था । इस मुकदमेंमें यदि वे ठेटीको न देखते,
तो शायद शहादतका इतना अच्छा विष्छेषण न कर सकते ।
उन्दोनि जो कुछ कहा उसमे उनको जरा मी सन्देह नही था ।
उन्होंने खूब सोच समझकर कहा था कि मरे साहनकी स्वाभाविक
मृत्यु हुई है । वे फिर जूरियेंसि कहने लगे-यदि कोई गठा दबोच
कर मरे साहवकी हत्या करता, तो उनके शरीरपर उसके निशान
जरूर मिकते । मरे साहबने स्नान करनेके लिए जब डुबकी ठगाई
थी उस समय ऊपरसे यदि कोई उनको दाब रखता, तो वह आत्म-
रक्षाके छिए जरूर छटपटते ।
टबकी उँचाई पच फीट थी । बह मरे साहबकी लाश मिल
नेके समय जलसे ऊपर तक भरा हुआ था । सिर्फ तीन इंच खाली
था | यदि हम यह मान लें कि आसामी इतना जबर्दस्त है कि
वह मरे साहबको ऊपरसे बहुत देर तक दावे रह सकता है-तो
बेशक उसको दोषी कह सकते हैं. । आपमेंसे अनेकने मरे साह-
बको देखा है । आसामी भी आपके सामने खड़ा है-इसको एक
बार गौरसे देखिए ।
मार्कोनी साहबके जन्मसे लाखो वर्ष पहटठे अंँखिंकी बिजलीके
प्रभावसे लोग बिना खन्दके बातचीत करना जानते थे । जज
साइबकी बातोंका मतलब लैठी और माताबदल कुछ भी नहीं सम-
झते थे । वे एक दूसरेकी ओर एकटक नजरसे देख रहे थे । इस
भावपूर्ण कटाक्षका मतलब कौन बता सकता है ? दोनोंकी ऑँखेंसे
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