मालवी - एक भाषा शास्त्रीय अध्ययन | Malavi - Ek Bhasha Shastriy Aadhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८. ] मालबी-एक भाषा-गास्त्रीय अध्ययन
जीवित बोलियो के श्रस्तित्व को खोज निकालना कठिन श्रव्य है, किन्तु
यथालब्ध प्रमारो के श्राघार पर उनको किचित् स्थिति का श्राभास हमें
अवश्य मिल सकता है । बौदढकालीन एवं श्र्लोक के समय की उज्जैनी
भाषां श्रथवा बोली के सम्बन्ध में ऊपर विवेचन किया जा चुका है ।
वर्तमान मालवी की परम्परा को भरत मुनि से पूर्व तक ले जाया जा
सकता है ! हमें पालि में कुछ ऐसे दब्दों का रूप प्राप्त होता है, जो श्राज
भी मालवी, राजस्थानी श्रादि में प्रचलित है ।
'मोर'--हित्दी की श्रनेक बोलियो मे प्रचलित मोर शब्द ( मयूर )
का म्रशोक के शिलालेखो मे पाया जाना जन-भाषा की प्राचीन, सजीव
परम्परा के उदघाटन में विलेष महत्व रखता है 1
पालि संस्कृत मालवी
३७. भ्रमि ग्रग्नि ग्रग्मि, शरान्न
३७. पियु प्रिय पिय, शयु
३७ स्क््लो मे खो
३८. श्रोट्ठ प्रोऽ5 श्रोट्ठ, होठ
४०. सक्ब वृक्ष रुखडों, रुख
४१. खीर. क्षीर खीर
४६. लोर लवगा लोख. लृण
५६. फर्म परशु फरभो
६२. भाम क्षाम भाम
६९. उष्टा उपा उण्ह्ानो ९
प्रोकं के गिरनार वाने लेख की, पालि की तरह सालवी में भी
प 1 0 1 9 1) ~ = = न च म
१. श्रार. के. सुकर्जा-ग्रशोकः पृष्ठ २४५ : राजकमल प्रकाश् :
२. पालि शब्यो के प्रारम्भ में दी गई संख्या पृष्ठों कीं सूचक है । 'पालि
साहित्य का इतिहासः पुस्तकं के पृष्टो मे उक्त शब्दों का उल्लेख है ।
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