महाभारत - कोश भाग १ | Mahabharat-kosh BHag 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाव |... के साथ संमुद्र तट पर गये । उस समय मनुष्य, नाग, गन्थव, यक्ष और किन्नर सभी उस . अद्धत इश्य को देखने के छिये महात्मा अगस्त्य के पीछे चर पढ़े ( ३. १०४ )” ।. “समुद्रतट पर जाकर अगस्त्य सुनि ने लोगों के ,देखते-देखते ही समुद्र का पान कर लिया । तब देवताओं ने विधादु के रूप में उनकी स्तुति की । उस समय चारों ओर गन्वर्वो के वादयों की ध्वन्तिं फैठ रही थी और अगंस्त्य पर दिव्य पुष्पों की वर्षा हो थी । उन दैंत्यों. को, जिन्हें सुनियों ने अपनी तपस्या, द्वारा पहले से ही दर्थ कर रक्‍्खा था, देवताओं ने अपने विविध आयुर्षों से मार _ डाला। कुछ दैत्य, जो वदुन्धरा को विदीण करके पाताल में चले गये, मरे जाने से बच गये । तदुपरान्त देवों ने अगस्त्य मुनि से समुद्र को पुनः जल से परिपूर्ण कर देने का आग्रह किया, किन्तु उस समय तक अगस्त्य ने समुद्र के जल को पचा लिया था । तब विष्णु सद्दित के चर दव-्गण समुद्र को भरने का उपाय जानने के छिये ब्रह्मा जी के पास गये ( ३. १०५) । ब्रह्मा जी ने उनको बताया कि दीघंकाल के. पश्चात्‌ उस समय समुद्र पुनः अपनी स्वाभाविक अवस्था में औआ जायगा जब महाराज भगीरथ अपने पूर्वजों के उद्धार के उद्देश्य से सप्ुद्ठ को आगाष जल से भर देगें। न जगावह) एक दृष्णि योद्धा का नाम है ( ७. ११, २७) । असि--पत्नचमद्दाभुतों में से एक तथा उसके 'अभिमानी देवता, जो भगवान्‌ के सुख से उत्पन्न हुये । तीन अस्वियों का इष्टान्त ( १. १, ९५ ) अंजुन द्वारा खाण्डव दाह के संमय अझि को दूप्त करना ( १. है, १५२ ) । इन्द्र और अभि राजा शिवि के धर्म की परीक्षा लेने के लिये भाये थे (१. २, १७३ )। अजुन द्वारा अपना दिव्य गाण्डीव धनुष अभि को अर्पित करना ( १. २, २६६ ) । ''यः पुरुष: स पजेन्यों योश्वः सोध्शियंः' (१. १, १६७ )। मगवानू शौनक का अभि की उपासना में संल्स होना (१. ४, ४)। “थूगु की. पल्ली पुलोमा का पहले एक पुरोमन्‌ नामक राक्षस ने. वरण किया था, किन्तु बाद में ऋण के साथ उसका विवाह हो गया। एक दिन जत्र खान करने के लिये भरगु आश्रम से ... बाहर चले गये थे तब पुठोमा का अपद्रण करने के उद्देश्य से वह . राक्षस वहाँ आया । उस समय उसने असिद्दोत्र-गृह में प्रज्वलित पावक से पूछा, दि असिदेव ! मैं सत्य की शपथ देकर पूछता हूँ कि यह किसकी . पत्नी है, मेरी अथवा भरूयु की अभि ने उत्तर दिया कि “इसमें सन्देद नहीं कि पहले तुमने ही पुलोमा का वरण किया था, किन्तु उसके पश्चात्‌ . महर्षि भरूगु ने मुझे साक्षी बनाकर वेदोक्त क्रिया. द्वारा विषिवत्‌ उसका. प्रणिग्रदण किया है असि का यह वचन सुनकर उस राक्षस ने वराइ का रूप धारण करके पुलोमा का . अपहरण किया । उस समय पुलोमा की ... कुक्षि में निवास कर रहा गर्भ अत्यन्त रोष के कारण माता के उदर से च्युत होकर बाहर निकल आया जिसको देखते हो वह राक्षस तत्काल ... जलकर भस्म हो गया । ब्रह्मा ने पुलोमा के नेत्रजल से वधूसरा नदी का निर्माण किया । स्रगु ने अधि को यह कहते हुए शाप दियां कि तुम .. सवभक्षी हो जाओगे” उस शाप से श्रुद्ध होकर अशिदेव मे दिजों के . अधिहोत्र, यज्ञ, सूत्र, तथा संस्कार. सम्बन्धी. क्रियाओं से अपने को .....समेट लिया. जिसके फलस्वरूप ' समस्त प्रजनन अत्यन्त दुः्खी दो गये । . तब ब्रह्मा ने मधुर वाणी में अपि को यह आश्वासन देते हुए प्रसन्न किया कि. उनका समस्त शरीर. सबंभक्षी . नहीं होगा वरनू उनके ... अपान नदेश में स्थित ज्वाला तथा. उनकी. क्रव्याद सूत्ति ही सब ..... झा भक्षण करेगी। साथ ही उनकी ज्वाला से दग्ध होने पर सब कुछ ... झुद्ध हो जायगा ( १. ५ २१. २२. र७. २१; दे, १. १२. १४; ७, श्थिा, १८. ररेड९५. २८. २९)”। समुद्र बडवानल के प्रज्बखित मुख में सदा ........ जलूरूपी हविष्य को आइति देता रहता है ( १. २१, १६: 'बडवासुखे-. | (८ 2 [ नभि भयंकर जान पढ़ते थे (१. २३, ७) । देवताओं द्वारा गरुड़ के रूपमें अधि की स्तुति (१. २३, १०. १७) । कुपित जाहझण; अभि, सुर्य, विष और शख्र के समान भयंकर होता है (१. २८ ४. ६)! पूर्वकाल में देवताओं द्वारा गुफा में छिपे हुये अश्चि को खोज निकालने का उल्लेख ( १. रे; ९ ) । अभिदेव द्वारा अजुन को गाण्डीव धनुष इत्यादि प्रदान करना ( रै. ६१, ४७ )। यह्ञकर्म के अनुष्ठान के समय प्रज्वछित 'अस्ि से धू्युम्न का प्रादु्माव ( १. इरे, १०८ ) । कुमार के पिता अभि (१. ६६, २३ ) | धरृ्युम्न को अधि का भाग कहा गया है ( १. ६७, १२६) । अभ्नि के तपने की शक्ति का उल्लेख ( २. ८८, १२ ) । त्रह्मा जी के पास अन्य देवताओं सहित अश्ि की उपस्थिति का उल्लेख ( १. २११, ४ )। धनजय द्वारा अश्रिददोत्र सम्पन्न करने से भश्िदेव का सन्दुष्ट होना (१. २१४, १५ ) । अभ्विदेव से सम्बद्ध कत्तिका नक्षत्र में कृष्ण ने सददेव से एक पुत्र उत्पन्न किया ( १. २२१, ८५ ) । खाण्डव वन को भरंम करते हैं (१. २२२-२३४ : है. २२३, १२; २रद, १०; २२८, इं०; २२९, २१. २३. २७; रे२, पद. ९-१०, शैर-रे, रण; रे, ९ रेड, 6२ 3: 'दोप्यमाना इवासयः' (२. ७, ९) | ब्रिय इवासय (२. १५, २३; २०५ द)। “रविसोमाधिवपुषमू” ( २. २०, २३ )। अर्जुन विशाल सेना के साथ अधि के दिये हुये रथ द्वारा प्रस्थान करते हैं ( २, २५, ८ ) । सील वे कन्या अभिद्दोत्र में अश्नि को प्रज्वलित. करने के लिये उपस्थित हुआ करती थी (२. ३१, २८) । सदददेव के त्रिरुद्ध नील को सहायता और नील की पुत्री से विवाह करते हैं; सदददेव द्वारा इनकी स्तुति; सददेव को अभयदान देते हैं; इनके ( अभि के ) नामों की गणना ( २. २१; ३६, र८-रे९, ४५-४६. ४९ )।. युधिष्टि द्वारा अभि के रूप में सूर्य की उपासना, जहाँ अधि को सूर्य के एक सौ आठ नामों में से एक बताया गया है (३. हे, ६० )। लोकपाल-गण अश्ि के साथ देवराज के समीप आये (है. ५४, २४) । अधि, इन्द्र, यम और वरुण, दमयन्ती के स्वयंबर में आये और नल के द्वारा इन लोगों ने. दमयन्ती को अपने आने की सूचना भेजी; किन्तु दमयन्ती ने इन लोगों को. अस्वीक्ृत कर दिया ( है. ५५, ४. ६. रेहे; ५७, ३३. रु )। अश्वितीर्थ का उछेख ( रे. ८३, १३८ ) | 'ऋषयरनत्र देवाश्च वरुणो ६झिः प्रजापतिः' ड, ८, ४५ ह) । 'आज्यमागिम तथा तर्षथित्वा यथाविधि” ( रे. ८५, ५२ )। 'पितरो, हुताशनश्ैव नक्षताणि ग्रहास्तथा” ( है. ९९, ५७ ) । “असिर्मित्रो योनिरापोधथ देव्यो विष्णोरेत- स्त्वमसृतस्य नामिः ।”” ”अभिश्व ते योसिरिडा च देहो रेतोधा विष्णी- रसृतस्य नाभिः । ( रे. ११४, २७-२८ )। काइमीर मण्डल का उल्लेख जहाँ उत्तर के समस्त ऋषि, नहुष-कुमार, ययाति, अश्ि और काइ्यप का 'संवाद हुआ था ( रै. १३०, ११ ) । राजा उशयीनर की परोक्षा लेते के लिये अभि ने कबूतर का रूप धारण किया था. (दे. इ३₹०, २३ ) । मित्रों की भाँति सदा साथ विचरने वाले इन्द्र और भसि ( है. शश४, ९) 1. 'प्ततो देवा वर तस्में ददुरश्िपुरोगमाः” ( है. १३८, २०) ।. दिवाभिपुरो गमान्‌' ( है. १३८, २३ ) । गड्का की सात धाराओं से सुशोमित रजोगुण रहित पुण्यतीर्थ का. उल्लेख, जहाँ असिदेव सदैव .प्रज्वलित रहते हैं... (श. १३९, २ )। 'शिक्ष मे भवन गत्वा सर्वाण्यस्राणि भारत । «वायोरग्ने- वेसुभ्योधपि बरुणात्‌ समर्द्रणात्‌ ॥? (३. १६८, २९) । 'यरिमिन्नशिमुखा देवा (३. १८६, ह० ) । अन्नि को नारायण का सुख बताया. गया दै, तथा वडवावक्त्र और समवत्तेक अभि को नारायण के साथ. समीकृत किया... परीक्षा लेने के छिये उद्यत होना और अध्िदेव द्वारा कबूतर का रूप... घारण करके अपना प्राण बचाने के. छिये राजा के. पास भागते. “मी रे हुवे जाना ( १. १९७, १-२) । झुवण को असि की प्रबम सन्तान कहा... गया है (३. २००, १२८ )। “इन्दरसोमाधिवरणा” मधुसूदन की स्तुति... कि ..




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