समयसार प्रवचन तृतीय पुस्तक | Samayasar-pravachan Tratiya Pustak

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Samayasar-pravachan Tratiya Pustak by श्री मत्सहजानन्द - Shri Matsahajanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाथा-द€ [९१ ज्ञान विकल्पते सस्यवत्वं की क्षति नहीं - सम्थक्त्वमें वाचा ज्ञानके विकत्पोसि नहीं भाती है । ज्ञानका विकल्प माने चीज ज्ञानम श्राना ) चीजके जानमें आनेसे सम्पक्त्वकों क्षति नहीं पहुंचती है। सम्यक्त्वकी क्षति यही है कि या तो सम्यक्त्व मिट जाये या संवर भ्रौर निर्जराकी हानि होजाये । श्रात्मामे रागद्ेप कपायादि भी होते रहें, मगर इनसे सम्यवत्वकी हानि नहीं होती है । यह वात जरूर है कि राग-दप मोह के भ्रात्मामे परिणमनसे भ्रात्माका विकास रुक जाता है, 'रागादि श्रात्माके विकासको नहीं होने देते, उसमे वाधक होते ईैः--परन्तु सम्यक्त्वको इनके होने से कोई हानि नहीं पहुंबती है । कपाय भी सम्यक्त्वका नाश नहीं करती हैं । कपाय होती रहं वौर-वार हौती रदँ यह परम्परा सम्यक्त्वे नाशका कारणं बन सकती है, वहां मी उनसे सम्यक्त्वमे वाधा नदीं पहुची । विपरीत भ्रभिप्राय से ही सम्यक्त्वकी क्षति हई रागादिक वाधक श्रवदय है । श्रात्मोत्कपमें यहाँ तो केवल स्वष्पकी शटि रखकर वर्णन हो रहा है कि राग चरि गुणका विकार है वह सम्यक्त्वका विपक्षी नहीं । केवल सम्यग्दर्शन ही प्रात्माके उत्कपंका कारण नहीं दै, श्रपतु चारित्र भौ तो श्रात्माके सुविकासके उत्कर्पमे. कारण है । . कितने हो जीव जो विपरीत श्रभिप्रायमें पढ़े हुए हैं, वे कहते हैं--श्रघ्य- बसान ही जीव है । रागदधष भ्रादि विभावोसि कलुपित परिणमन अध्यवसान कहलाता है ।! रागादि परिणामोसि सम्यक्त्वका नाश नहीं होता, इनसे चारि की क्षति है। सम्यक्त्वके कारणा जो संवर निर्जरा होती टै, वह रागादिके होनेपर भी होती रहती है । सम्यक्त्वके र्नेपर रागका रहना एक दोप है 1 परन्तु राग चारित्रपर भ्राक्रमण करता है, सम्यक्त्वका घात नहीं कर सकता दै । श्रात्मामिं जो रागादि परिणाम पाये उति हूँ, उसे श्रध्यवसान कहते हैं, रागादि भाव बुद्धिपूर्वको, या अवुद्धिपूर्वक हो, समभे श्रति्होयान भ्रति हों--रागादिसे कलुपित जो परिणाम है, उसे भ्रध्यवसान,कहते हं । भिघ्या- षष्टि जीव श्रध्यवेसानको जीवं मान वैठा-है ! क्रोध मान-माया-लोभ-राग-द्रेप,




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